आल्प्स

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लेख सूचना
आल्प्स
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 448
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्री राधिकनारायण माथुर

आल्प्स यूरोप की एक विशाल पर्वतप्रणाली है जो पश्चिम में जेनोआ की खाड़ी से लेकर पूर्व में वियना तक फैली हुई है। यह प्रणाली उत्तर में दक्षिणी जर्मनी के मैदान और दक्षिण में उत्तरी इटली के मैदान से घिरी हुई है। प्रणाली लगातार ऊँचे पहाड़ों से नहीं बनी है, प्रस्तुत बीच बीच में गहरी घाटियाँ हैं। पर्वत उत्तर की ओर उत्तल है। अधिकांश घाटियों की दिशा पूर्व पश्चिम या उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर है। कुछ गहरी घाटियां पर्वतश्रृंखलाओं को काटती हैं, जिससे इस पर्वत के दोनों ओर स्थित मनुष्यों, जंतुओं और वनस्पतियों का आवागमन संभव हो सका है। आल्प्स शब्द की उत्पत्ति अनिश्चित है। इसका उच्चतम शिखर पश्चिमी आल्प्स में स्थित मांट ब्लैंक है (ऊँचाई 15,781 फुट)।

आल्प्स की सीमाएँ-उत्तर में यह पर्वत बेसिल से कांस्टैंस झील तक राइन नदी द्वारा और सैल्ज़बर्ग से वियना तक बवेरिया के मैदान तथा निचली पहाड़ियों द्वारा घिरा है। दक्षिण में इसकी सीमा टयूरिन से ट्रिएस्ट तक पीडमांट, लोंबार्डी और वेनीशिया के विशाल मैदान द्वारा निर्धारित होती है। इसका पश्चिमी सिरा ट्यूरिन से आरंभ होकर दक्षिण में काल डी टेंडा तक और पूर्व की ओर मुड़कर काल डी आलटेयर तक चला गया है।

प्राकृतिक विभाग - आल्प्स के तीन मुख्य विभाग हैं: पश्चिमी आल्प्स काल डी टेंडा से सिंपलन दर्रे तक; मध्य आल्प्स, सिंपलन दर्रे से रेशने शिडेक दर्रे तक और पूर्वी आल्प्स, रेशने शिडेक दर्रे से राड्स्टाइर टैवर्न मार्ग तक।

भूविज्ञान और संरचना - आल्प्स पर्वत उस विशाल भंजित क्षेत्र का एक छोटा सा भाग है जो अनेक वक्राकर क्रमों में मोरक्को के रिफ पर्वत से आरंभ होकर हिमालय के आगे तक फैला हुआ है। आल्प्स एक भूद्रोणी (जिओसिनक्लाइन) में स्थित है। यह भूद्रोणी अंतिम कार्बनप्रद युग से आरंभ होकर संपूर्ण मध्यकल्प में रहकर तृतीयक कल्प के मध्यनूतन युग तक विद्यमान थी। यह भूद्रोणी उत्तर में यूरेशियन और दक्षिण में अफ्रीकी स्थलपिंडों से घिरी हुई थी। ज्युस और अन्य वैज्ञानिकों ने इस द्रोणी में स्थित लुप्त सागर को टेथिस सागर की संज्ञा दी है। कार्बनप्रद युग से आंरभ होकर इसमें अवसादों के मोटे स्तरों का निक्षेपण हुआ और साथ ही साथ भूद्रोणी नितल धंसता गया। इस प्रकार अवसादों का निक्षेपण लगातार समुद्रतल के नीचे लगभग एक ही गहराई पर होता रहा। इसके बाद विरोधी दिशाओं से दाब पड़ने के कारण द्रोणी के दोनों किनारे समीप आ गए, जिसके परिणामस्वरूप एकत्रित अवसादों में भंज पड़ गया। अनुमानत: अफ्रीकी पृष्ठप्रदेश (हिंटरलैंड) उत्तर में यूरोपीय अग्रप्रदेश (फोरलैंड) की ओर गतिशील हुआ। आरगैंड तथा उसके सहयोगी अनुसंधानकर्ता इस धारणा से सहमत हैं। इसके विपरीत, कोबर के मतानुसार आल्प्स का भंजन दो अग्रप्रदेशों के एक दूसरे की ओर बढ़ने से हुआ है।

आल्प्स का अधिकांतर भाग जलज शिलाओं द्वारा निर्मित है। ये शिलाएँ रक्ताश्म युग से लेकर मध्यनूतन युग तक की हैं। परंतु इनसे अधिक प्राचीन चट्टानें भी, विशेषकर पूर्वी आल्प्स में, पाई जाती हैं (जैस गिरियुग, कार्बनप्रद युग, मत्सयुग, प्रवालादि युग और कैंब्रियन युग की चट्टानें।) माणिभीय नाइस और शिस्ट तथा आग्नेय शिलाएँ भी मिलती हैं। कुछ चट्टानों का महत्व केवल स्थानीय है, जैसे मोलास, नागलफ्लू और फ्लिश। ये सब नवकल्पीय हैं।

हिमनदियाँ - अनुमानत: आल्प्स में हिमनदियाँ और नेवे (दानेदार हिम) क्षेत्रों की संख्या कुल मिलाकर 1,200 है: इसकी विशालतम हिमनदी आलेश है, जिसकी लंबाई 16 मील और नेवे सहित प्रवाहक्षेत्र का विस्तार 50 वर्ग मील है। हिमनदियों की समुद्रतल से निम्नतम ऊँचाई भिन्न-भिन्न है। यह ग्रिंडेलवाल्ड पर समुद्रतल से केवल 3,200 फुट की ऊँचाई पर है। हिमरेखा 8,000 से लेकर 9,500 फुट के बीच स्थित है। प्रधान पर्वत पर हिमनदियों और नेवों की संख्या इसके अंतर्गत पर्वतमालाओं की तुलना में अधिक है। तथापि, आल्प्स की तीन विशालतम हिमनदियाँ, अर्थात्‌ आलेच, ऊँटरार और वीशर (अंतिम दोनों 10 मील लंबी) बर्नोज़ ओवरलैंड में स्थित है। प्रधान पर्वतमाला की विशालतम हिमनदियाँ मर डी ग्लेस और गोरनर हैं जिनमें से प्रत्येक 91/4 मील लंबी हैं।

झीलें - आल्प्स की झीलें विभिन्न प्रकार की हैं। ज्यूरिख झील हिमनदियों द्वारा निक्षिप्त हिमोढ़ (ढोंके, रोड़े आदि) नदीघाटी के आर पार इकट्ठा हो जाने से बनी है। मैटमार्क झील भी एक पार्श्विक हिमोढ़ के बांध का रूप धारण करने से बनी है। भूपर्पटी की गतियों से बनी झीलों एक हिमानी बनी झीलों में जूस और फालेन झीलू उल्लेखनीय हैं। चुने के चट्टानी प्रदेश में पत्थ्ज्ञर के घुल जाने से बनी झीलों में डौबन, मुटेन और सीवाली झीलें महत्वपूर्ण हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ