आवेशन
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आवेशन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 457 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री लालजीराम शुक्ल |
आवेशन मानव व्यक्तित्व अनेक प्रकार के विचारों, भावनाओं, इच्छाओं और आकांक्षाओं से बना होता है। इनमें से कुछ व्यक्ति को ज्ञात रहती हैं और कुछ अज्ञात रहती हैं, कुछ समाज द्वारा मान्य तथा सराहनीय होती हैं और कुछ अमान्य और निंद्य होती हैं। पहले प्रकार के तत्वों को मनुष्य स्वीकार करता है और उनका एक प्रकाशित संगठन बन जाता है। यह संगठन ही उसका स्वत्व कहलाता है। इसकी प्रशंसा होने से उसको खुशी होती है और निंदा होने से उसको दुख होता है। आधुनिक मनोविज्ञान बताता है कि मनुष्य का यह प्रकाशित व्यक्तित्व उसका संपूर्ण व्यक्तित्व नहीं है। मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व में उसके मन में उपस्थित ऐसी बातें भी रहती हैं जिन्हें वह स्वयं बुरा समझता है और जिन्हें वह भुला देना चाहता है। मनुष्य का प्रकाशित स्वत्त्व ऐसी इच्छाओं, भावनाओं को दबाता रहता है जो समाज में निंद्य मानी जाती हैं। ये दमित भावनाएँ मनुष्य के भीतरी अदृश्य मन में चली जाती है।
ये दबी इच्छाएँ, भावनाएँ तथा स्मृतियाँ स्वयं में संगठित हो जाती हैं। कभी इनके एक और कभी अनेक संगठन होते हैं। ये मनुष्य के अचेतन मन में उपस्थित रहते हैं। ये मनुष्य के प्रकाशित स्वत्व के प्रतिकूल षड्यंत्र करते रहते हैं। वे उसे अपनी शक्ति से बली न बनाकर उसे दुर्बल बनाते रहते हैं। इस प्रकार ये तत्व मनुष्य के अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों के कारण बन जाते हैं। जब कभी मानसिक विभाजन में पड़ा व्यक्ति बाहरी संकट में पड़ जाता है तो उसके दबे भाव, जो संगठित हो जाते हैं, चेतना के स्तर पर अपने विभक्त रूप में प्रकाशित होते हैं। यह प्रकाशन किसी किसी समय मनुष्य के सामान्य व्यक्तित्व को हटाकर होता है। इसी प्रकार के प्रकाशन को आवेशन अथवा भूतबाधा कहा जाता है।
भूतबाधा की घटनाएँ प्राचीन काल से होती आई हैं। जिस समाज में शिक्षा और वैज्ञानिक विचार की कमी होती है उसमें भूतबाधा की घटनाएँ उतनी ही अधिक होती हैं। ये घटनाएँ विभाजित व्यक्त्ति के परिणाम हैं। भूतबाधा से पीड़ित व्यक्ति भूत की उपस्थिति अपने से बाहर मानता है। वह सोचता है कि बाहर का भूत ही उसे लग गया है और उसे त्रास देता है। आधुनिक मनोविज्ञान की खोजों से पता चला है कि मनुष्य को त्रास देनेवाला वह भूत उसके बाहर नहीं है, वरन् उसी के भीतर है। वह उसी के व्यक्तित्व का वह भाग है जिसकी उपस्थिति वह स्वीकार नहीं करना चाहता और उसे दमित तथा विस्मृत कर चुका है। वह भाग अभद्र होता है; अतएव जब उसकी उपस्थिति उसको स्वीकार करनी पड़ती है तो वह उसे अपने से बाहर से आया हुआ मानता है। इसी प्रकार की मानसिक क्रिया को आधुनिक मनोविज्ञान में प्रक्षेरण की क्रिया कहा जाता है। डा. फ्रायड ने मनुष्य के अचेतन मन की इस क्रिया का पता पहले पहल लगाया। अब यह सभी मनोवैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत हो गया है।
जब कोई मनुष्य भूत के वश में होता है तो वह विवेकहीन चेष्टाएँ, बातचीत और आचरण करने लगता है। आवेशन के समय के समय कभी कभी व्यक्ति जोर से चिल्लाता है और कहता है कि मैं अमुक जगह का ब्रह्म हूँ अथवा पीर हूँ। वह उस व्यक्ति को पकड़ लेने का कुछ कारण भी बताता है। ओझा लोग ऐसे भूतों की झाड़फूंक करते हैं। कुछ समय के लिए भूत के उत्पात शांत हो जाते हैं। तब समाज में अशिक्षित लोग समझ लेते हैं कि आक्रांत व्यक्ति को सचमुच में कोई भूत अथवा ब्रह्म पकड़े था और ओझा की झाड़फूंक से वह शांत हो गया। इस प्रकार के उपचार को आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने निर्देशन चिकित्सा कहा है।
उक्त उपचार से रोगी को स्थायी आरोग्यलाभ नहीं होता। इससे व्यक्त्तित्व का दमित भाव समाप्त नहीं होता। वह केवल कुछ समय के लिए अदृश्य हो जाता है। जब फिर अवसर आता है तो पुराना भूत फिर मनुष्य के शरीर में आ जाता है और मनुष्य की चेतना को विभाजित कर देता है। यह कभी कभी शरीरिक रोग बनकर प्रकाशित होता है। आधुनिक मानसिक चिकित्सा विज्ञान में पहले प्रकार के दमित भाव के प्रकाशन को हिस्टीरिया कहा गया है और दूसरे के प्रकाशन को रूपांतरित हिस्टीरिया कहा है।
सभी प्रकार की भूतबाधाओं का अंत तभी होता है जब मनुष्य का दमित अवांछनीय भाव चेतना के स्तर पर व्यक्ति को बिना बेहोश किए ले आया जाता है। इसे रोगी द्वारा स्वीकृत कराकर जब उसका उपयोग समाजहित के कार्यों में होने लगता है तभी मनुष्य पूर्णत: स्वास्थ्यलाभ करता है अर्थात् तभी वह आवेशन से अथवा भूतबाधा से मुक्त होता है ऐसी अवस्था में मनुष्य के चेतन और अचेतन मन में एकत्व हो जाता है और उसका संपूर्ण व्यक्तित्व बली रहता है। फिर वह जो कुछ सोचता है उसके अनुसार वह काम करने में सफल होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ