आस्ट्रेलियाई भाषा
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आस्ट्रेलियाई भाषा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 473 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. बाबूराम सक्सेना |
आस्ट्रेलियाई भाषाएँ इस परिवार की भाषाएं आस्ट्रेलिया महाद्वीप के सभी प्रदेशों में मूलनिवासियों द्वारा बोली जाती हैं और एक ही स्रोत से निकली हैं। ये अंत में प्रत्यय जोड़ने वाली, योगात्मक, अश्लिष्ट प्रकृति की हैं, इस कारण कुछ लोग इन्हें द्राविड़ भाषाओं से संबद्ध समझते थे। इस परिवार की टस्मेनिया भाषा अब समाप्त हो चुकी है। अन्य भाषाएँ भी जंगली जातियों की हैं। समस्त आस्ट्रेलिया महाद्वीप की जनंसख्या प्राय: सवा करोड़ है जिसमें ये मूलनिवासी केवल 50-60 हजार रह गए हैं।
इन भाषाओं में महाप्राण व्यंजनों को छोड़कर कवर्ग, तवर्ग, और पवर्ग के तीन-तीन व्यंजन हैं। चारों अतस्थ (य, र, ल, व) भी हैं। स्वरों में इ, ई, उ, ऊ, ए, ए, ओ, ओ विद्यमान हैं। एकवचन, द्विवचन, और बहुवचन का प्रयोग होता है। कहीं-कहीं त्रिवचन भी है। क्रिया की प्रक्रिया जटिल है जिसमें सर्वनाम जुड़ जाता है। संज्ञा की कर्तृ, कर्म, संप्रदान, संबंध, अपादान आदि विभक्तियाँ भी हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ