इकतारा

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लेख सूचना
इकतारा
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 503
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

इकतारा एक प्राचीन एकतंत्रीय वाद्य। यह अब प्राय: लुप्त होता जा रहा है। इसका मुख्य प्रयोजन केवल स्वर देना था। नीचे एक तुंबी होती थी और उसके अंदर से निकलकर एक दंड रहता था जा तुंबी के नीचे भी कुछ निकला रहता था। उसमें से बँधा हुआ एक तार तुंबी पर से होता हुआ दंड के ऊपर तक जाता था जहाँ खूँटी से बंधा रहता था। तुंबी के ऊपर, तबले की भांति, चर्म मढ़ा रहता था जिसपर एक पच्चड़-सा लगाकर तार ऊपर ले जाया जाता था। कहीं-कहीं पर एक तार के नीचे दूसरा तार भी रहता था।

अधिकतर लोकसंगीत तथा भक्तिसंगीत के गायक इसका प्रयोग करते थे। आजकल भी महाराष्ट्र, पंजाब तथा बंगाल में इन गायकों के हाथ में यह दिखाई पड़ता है, बंगाल के बाउल कायक तो बराबर इसे लिए रहते हैं। नारदवीणा तो प्रसिद्ध है ही, किंतु कही-कहीं नारद के हाथ में इकतारा भी दिखाया गया है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ