इटली का इतिहास
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इटली का इतिहास
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 504 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलाशचंद्र शर्मा |
इटली का इतिहास सन् 1946 में इटली की जनता ने मतदान द्वारा इटली को गणतंत्र घोषित किया। सन् 1947 में इटली की असेंबली ने गणतंत्र का एक नया विधान बनाया जो 1 जनवरी, सन् 1948 से लागू है। इस विधान में एक केंद्रीय सरकार, पार्लामेंट के दो सदन, एक राष्ट्रपति जिसकी पदावधि सात वर्ष है, और वयस्क मताधिकार की व्यवस्था है। 109 एकड़ की वातिकन सिटी, अर्थात् पोप की नगरी सन् 1929 से ही संसार का सबसे छोटा स्वाधिन राज्य है। उसके अपने सिक्के, अपने डाक टिकट हैं; पोप उसके प्रधान हैं।
इटली को मुख्य लाभ विदेशी यात्रियों से होता है। सनृ 1956 में 70 लाख विदेशी यात्री सैर सपाटे के लिए इटली पहुँचे थे। इन यात्रियों से इटली को एक खरब, 54 अरब लीरों का लाभ हुआ था।
इटली में अनेक क्षेत्रीय बोलियाँ प्रचलित हैं। इन क्षेत्रिय बोलियों के अतिरिक्त वहाँ आदान-प्रदान की मुख्य भाषा साहित्यिक इतालियाई है। मूल रूप से वह इटली के एक प्रांत तुस्कानी की भाषा थी जिसे अनेक लेखकों और कवियों ने सँवारकर उत्कृष्ट बनाया और जिसमें दाँते ने अपनी रचनाएँ लिखीं।
सभ्यता का फूलना फलना कला की प्रगति से बहुत संबंध रखता है और कला पर उस देश की जलवायु का बहुत गहरा असर पड़ता है। यूरोप के किसी दूसरे देश ने आज तक कला और विशेषकर चित्रकला में इतनी कीर्ति प्राप्त नहीं की जितनी इटनी ने। इसका कारण यह है कि इटली में सदा साफ नीले आसमान, खिली हुई धूप और छिटकी हुई चाँदनी के दर्शन होते हैं। इटलीवालों का रंग वैसा ही होता है जैसा गोरे रंग के भारतवासियों का। उनकी आँखे और बाल भारतीयों की ही तरह काले होते हैं।
प्राचीन इतिहास के अनुसार नवीं सदी ई. पू. में एशिया कोचक की एक रियासत लीदिया के राजा अत्ती का बेटा तिरहेन लीदिया की आधी जनसंख्या के साथ जहाजों में बैठकर इटली के पश्चिमी किनारे पर उतरा। अपने सरदार के नाम पर ये आगंतुक अपने को 'तिरहेनी' कहने लगे। इन लोगों ने समुद्र के किनारे कई बस्तियाँ बसाईं। तिरहेनी उसी वक्त के थे जिस नस्ल के वैदिक आर्य थे। तिरहेनियों की भाषा और संस्कृत भाषा में काफी साम्य पाया जाता है। तिरहेनी धीरे धीरे बढ़ते हुए इटली के लातियम प्रांत में, समुद्र से 16-17 मील दूर, तीबेर नदी के किनारे तीन छोटी छोटी पहाड़ियों पर बसे हुए एक छोटे से गाँव रोमा या रोम में पहुँचे। तिरहेनियों के अधीन धीरे-धीरे रोम इटली का एक बड़ा नगर बनने लगा। आगे चलकर इस शहर ने इतिहास में वह नाम पाया जो आज तक यूरोप के और किसी दूसरे देश को नसीब नहीं हुआ। तिरहेनियों ने रोम में जूपितर (वैदिक-द्यौस्पितर) का एक विशाल मंदिर बनाया।
इतिहास के लेखकों के अनुसार तीसरी सदी ई. पू. में पहली बार पूरे देश का नाम इतालिया पड़ा। इतालया से ही आजकल का इताली या इटली शब्द बना। इतालिया नाम एक इतालियाई शब्द के यूनानी रूप 'वाइतालिया' से लिया गया है जिसका अर्थ है 'चरागाह'। यूनानी इटली को 'इतालियम्' अर्थात् 'चरागाह' कहते थे।
इटली की जनसंख्या में से 97.12 प्रतिशत लोग ईसाई धर्म की रोमन कैथलिक शाखा के अनुयायी हैं। 1901 की जनसंख्या के अनुसार इटली में प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के लोगों की संख्या केवल 65,000 थी।
इटली में जूलियस सरीज़र की बहन के पोते और रोमन साम्राज्य के पहले सम्राट ओगुस्तन सीज़र का शासनकाल स्वर्णयुग कहलाया। उससे कुछ कुछ पहले पीछे और समकालीन लातीनी के प्रमुख कवि लूक्रेति, वर्जिल, होरेस और ओविद हुए। लूक्रेती ने मृत्यु के बाद के जीवन को धोखा बताया है और धार्मिक रूढ़ियों का उपहास उड़ाया है। वर्जिल का काव्य 'ईनिद' इटली का राष्ट्रीय महाकाव्य समझा जाता है। इटली की प्रशंसा करते हुए वर्जिल अपने इस महाकाव्य की पंक्तियों में लिखता है :
ईरान अपने सुंदर और घने वनों सहित,
अथवा गंगा अपनी जलप्लावित लहरों सहित,
अथवा हरमुश नदी, जिसके कणों में सोना मिलता है,
इनमें से कोई इटली की समता नहीं कर सकते,
इटली, जहाँ सदा बसंत रहता है,
जहाँ भेड़ें वर्ष में दो बार बच्चे देती हैं और
जहाँ वृक्ष वर्ष में दो बार फल देते हैं।
जूलियस सीज़र के समय के इतालियाई गद्य लेखकों में सिसरों का नाम बहुत प्रसिद्ध है। सिसरों की भाषा में यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। सीज़र की हत्या के बाद सिसरो की भी हत्या कर दी गई।
रोमन साम्राज्य का असर इटली पर पड़ना स्वाभाविक था। पहली सदी ई. के लगभग इटली में स्वतंत्र नागरिकों की अपेक्षा गुलामों की संख्या कई गुना बढ़ गई थी। दूसरी सदी में मारकस औरीलियस के शासनप्रबंध से इटली का राजनीतिक और सांस्कृतिक ्ह्रास कुछ दिनों के लिए रुका, किंतु उसकी मृत्यु के बाद तीसरी सदी ई. का एक इतिहासकार लिखता है -साम्राज्य भर में और स्वयं इटली में शांति और समृद्धि नाम की कोई चीज़ नहीं रह गई थी। लड़ाइयों, महामारियों और आए दिन के दुष्कालों ने इटली की जनसंख्या को बेहद कम कर दिया था। ज़मीन की पैदावार घट गई थी खेतियाँ वीरान पड़ी थीं। शहर और कस्बे उजड़ते जा रहे थे। टैक्सों का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। मारकस औरीलियस की मृत्यु के 200 वर्ष के अंदर न केवल रोम साम्राज्य के बल्कि स्वयं इटली के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। पर वह कहानी रोमन साम्राज्य की है। रोमन साम्राज्य के पतन के बाद से आधुनिक समय तक राष्ट्र की हैसियत से इटली में न तो कभी राजनीतिक एकता रही, न स्वाधीनता और न संगठित राष्ट्र। सन् 476 ई. में इटली में नया राजनीतिक परिवर्तन हुआ। गौथ और बंडल कौमों के लोगों ने इटली की फौजों और रोम के दरबार तक पर कब्जा कर रखा था। सन् 475 ई. में एक छोटा सा बलवा हुआ। अंतिम रोगी सम्राट् जूलियस नेपो गद्दी से उतार दिया गया। उसकी जगह इटली में गौथों की हुकूमत कायम हो गई। लगभग 100 वर्षों के शासन के बाद सन् 565 ई. में गौथिक शासन समाप्त होकर इटली में लोंबार्दियों का शासन प्रारंभ हुआ।
सन् 774 ई. में चार्ल्स महान् (शार्लमान) अपने श्वशुर अंतिम लोंबार्द नरेश देसीदरिअस को पदच्युत कर स्वयं इटली का सम्राट् बन गया। चार्ल्स ने लोंबार्दो की बड़ी-बड़ी जमींदारियाँ समाप्त करके उन्हें छोटी-छोटी जमींदारियों में बाँट दिया और ईसाई धर्माध्यक्षों के अधिकार को बढ़ा दिया। इस चार्ल्स राजकुल के आठ नरेशों ने सन् 888 ई. तक इटली पर शासन किया। 10वीं शताब्दी में मगयार कबीले की सेनाओं ने उत्तरी इटली पर आक्रमण कर उसके उपजाऊ प्रदेशों को वीरान बना दिया। मगयारों के आक्रमणों के बाद इटली पर निरंतर उत्तर से हूणों के और दक्षिण से अरबों के आक्रमण होते रहे। 10वीं शताब्दी के अंत में इटली के धर्माचार्यों के आग्रह पर जर्मनी के सैक्सन सम्राट् ओट्टो ने इटली पर विधिवत् जर्मन सत्ता की घोषणा कर दी। तब से 15वीं शताब्दी के अंत तक जर्मनी के बदलते हुए राजघराने इटली के सम्राट् बनते रहे।
15वीं शताब्दी के अंत में अल्प काल के लिए इटली विदेशी शासन से मुक्त हुआ, किंतु 16वीं शताब्दी के आरंभ में वह फिर यूरोपीय राजनीति के शिकंजे में जकड़ गया। स्पेनी सत्ता अपने चरम उत्कर्ष पर थी। फ्रांस के साथ उसके युद्ध चल रहे थे। स्पेन, फ्रास और आस्ट्रिया तीनों में रोम के प्रदेशों पर अधिकार करने के लिए प्रतिस्पर्धा चलने लगी। यह स्थिति नेपोलियन के आक्रमण के समय तक बनी रही।
18 मई, सन् 1804 ई. में नेपोलियन ने इटली के ऊपर आधिपत्य की घोषणा की और 26 मई, 1805 ई. को मिलान के गिरजाघर में नेपोलियन ने इटली के लोंबार्द नरेशों का लौहमुकुट धारण किया।
इटली के ऊपर नेपोलियन का शासन यद्यपि क्षणिक रहा, फिर भी नेपोलियन के शासन ने इटलीवालों में एक राष्ट्र की ऐसी भावना भर दी और उनमें ऐसा संगठन और अनुशासन पैदा कर दिया जो उन्हें निरंतर स्वाधीन होने की प्रेरणा देता रहा। नई संधि के अनुसार इटली के ऊपर आस्ट्रिया का संरक्षण लाद दिया गया। अंदर ही अंदर इस संरक्षण को हटाने के प्रयत्न होते रहे।
सन् 1831 ई. में इटली के प्रसिद्ध देशभक्त जोसफ़ मात्सीनी ने मार्सेई में निर्वासित इतालियन देशभक्तों की एक 'जिओवाने इतालिआ' (नौजवाने इतालिआ) नामक संस्था का निर्माण किया जिसका उद्देश्य इटली को स्वाधीन करना था।
मास्तीनी की स्वाधीनता की घोषणा को अप्रैल, सन् 1846 में जनरल गारीबाल्दी ने मूर्त रूप दिया। गारीबाल्दी के नेतृत्व में हजारों नौजवानों ने फ्रेंच, स्पेनी, आस्ट्रियाई और नेपुल्सी सेनाओं का वीरता के साथ सामना किया। यद्यपि देशभक्तों की सेना चार-चार विदेशी सेनाओं के सामने न ठहर सकी और गारीबाल्दी को मातृभूमि छोड़ अमरीका में शरण लेनी पड़ी, फिर भी इस असफल स्वाधीनतासंग्राम ने इतालियाई जनता की देशभक्ति की आकांक्षा अत्यधिक बढ़ा दी।
10 वर्ष बाद 11 मई, सन् 1859 को गारीबाल्दी चुने हुए देशभक्तों के साथ अमरीका से अपनी मातृभूमि लौटा। उसने जनता की सहायता से पहले सिसली पर अधिकार किया। सिसली विजय के बाद 20 हजार सेना के साथ गारीबाल्दी ने दक्षिण इटली में प्रवेश किया। 18 फरवरी, सन् 1860 को इटली की नई पार्लामेंट की बैठक हुई और विधिवत् विक्टर इमानुअल को इटली का राजा घोषित कर दिया गया।
सन् 1914-18 के विश्वयुद्ध में इटली मित्रराष्ट्रों के पक्ष में अगस्त, सन् 1916 में युद्ध में शरीक हुआ। उस समय विश्वयुद्ध में इटली के छह लाख सैनिक मैदान में काम आए और लगभग 10 लाख बुरी तरह जख्मी हुए। महायुद्ध के बाद राजनीतिक परिस्थितियों ने ऐसा रूप धारण किया कि 30 अक्टूबर, सन् 1922 को इटली में मुसोलिनी के नेतृत्व में फासिस्त सत्ता के मंत्रिमंडल की स्थापना हुई।
दूसरे विश्वयुद्ध में इटली ने धुरीराष्ट्रों का साथ दिया। मित्रराष्ट्रों की विजय के पश्चात् इटली से फासिस्त सत्ता का अंत हुआ।
सं.ग्रं.-डब्ल्यू.डब्ल्यू. फाउलर : रोम; जे. ट्रेवेलियन : ए शार्ट हिस्ट्री ऑव दि इटालियन पीपुल (1936); जे.ए. साइमंड : रेनेसाँ इन इटैली (1875); डब्ल्यू.आर. थेयर : डान ऑव इटैलियन इंडिपेंडेंस (1893); वोल्टन किंग : हिस्ट्री ऑव इटैलियन यूनिटी (1899); एल. विलारी : द अवेकनिंग ऑव इटली (1924); एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (लेख-इटली) आदि। (वि.ना.पां.)
अपील की अदालत द्वारा घोषणा कर दिए जाने पर कि 2 जून, 1946 ई. को हुए मतदान में बहुमत ने देश में गणतंत्र शासन की स्थापना के पक्ष में मत दिया, इटली 10 जून, 1946 ई. को गणतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। 18 जून को तत्कालीन अस्थायी सरकार ने 'आर्डर ऑव द डे' नामक एक पत्रक जारी करके कानूनी तथा सरकारी बयानों एवं कागज पत्रों में पहले से चले आ रहे सभी साम्राज्यपरक संदर्भों तथा अवशेषों को पूर्णत: समाप्त करने की आज्ञा दी; यहाँ तक कि इटली के राष्ट्रध्वज पर बने 'हाउस ऑव सेवाय' की ढाल (शील्ड) के चिह्न को भी हटा दिया गया। इस प्राकर लगभग गत पौने दस शताब्दियों से चले आ रहे इटली में एकतंत्र शासन का अंत हो गया।
संविधान सभा ने 22 दिसंबर, 1947 को नया संविधान 62 के मुकाबिले 453 मतों से पारित कर दिया और 1 जनवरी, 1948 को यह संविधान लागू हो गया। इसमें 139 अनुच्छेद तथा 18 संक्रमणकालीन धाराएँ हैं।
संविधान में इटली का उल्लेख श्रम पर आधृत जनतांत्रिक गणतंत्र के रूप में किया गया है। संसद् के अंतर्गत प्रतिनियुक्तों (डिप्टियों) का सदन तथा सिनेट हैं। सदन के सदस्यों का चुनाव प्रति पाँचवें वर्ष वयस्क मताधिकार के माध्यम से प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति द्वारा किया जाता है। डिप्टी के पद के प्रत्याशी को कम से कम 25 वर्ष का होना चाहिए। उसका निर्वाचन मतदान द्वारा 80,000 व्यक्ति करते हैं। सीनेट के सदस्यों का चुनाव छह वर्ष के लिए क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में कम से कम छह सीनेटर चुने जाते हैं और हर एक सीनेटर दो लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। किंतु वाल द'ओस्ता क्षेत्र से केवल एक ही सीनेटर का निर्वाचन होता है। राष्ट्रपति पाँच ऐसे व्यक्तियों को जीवन भर के लिए सीनेट के सदस्य मनोनीत कर सकता है जो समाजविज्ञान, कला, साहित्य आदि के क्षेत्र में प्रख्यात एवं जाने माने हों। कार्यकाल समाप्त हो जाने पर इटली का राष्ट्रपति जीवन भर के लिए सीनेट का सदस्य बन जाता है किंतु यह तभी जब वह सदस्य बनने से इनकार न करे। सदन तथा सीनेट के संयुक्त अधिवेशन में दो तिहाई बहुमत से राष्ट्रपति का निर्वाचन किया जाता है किंतु यह तभी जब वह सदस्य बनने से इनकार न करे। सदन तथा सीनेट के संयुक्त अधिवेशन में दो तिहाई बहुमत से राष्ट्रपति का निर्वाचन किया जाता है जिसमें प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद् से तीन-तीन सदस्य भी मतदान करते हैं (वाल द'ओस्ता केवल एक) किंतु तीन बार मतदान के बाद भी यदि राष्ट्रपति पद के किसी भी उम्मीदवार को दो तिहाई मत नहीं मिल पाते तो पूर्ण बहुमत पानेवाले प्रत्याशी को राष्ट्रपति चुन लिया जाता है। राष्ट्रपति की आयु 50 वर्ष से ऊपर रहती है। उसका कार्यकाल सात वर्ष का होता है। सीनेट का अध्यक्ष राष्ट्रपति के डिप्टी की हैसियत से कार्य करता है। राष्ट्रपति संसद् के सदनों का विघटन कर सकता है लेकिन कार्यकाल समाप्ति के पूर्व के छह महीनों में उसे यह अधिकार नहीं रहता।
इटली में 15 न्यायाधीशों का एक संवैधानिक न्यायालय होता है जिसके पाँच न्यायाधीशों को राष्ट्रपति, पाँच को संसद् (दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में) तथा पाँच को देश के सर्वोच्च न्यायालय (विधि तथा प्रशासन संबंधी) नियुक्त करते हैं। इटली के संवैधानिक न्यायालय को लगभग वैसे ही अधिकार प्राप्त हैं, जैसे अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय को।
टीका टिप्पणी और संदर्भ