ईलियद

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लेख सूचना
ईलियद
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 37
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक स्वरगीय भोलानाथ शर्मा

ईलियद यूरोप के आदिकवि होमर द्वारा रचित महाकाव्य। इसका नामकरण ईलियन नगर (ट्राय) के युद्ध के वर्णन के कारण हुआ है। समग्र रचना 24 पुस्तकों में विभक्त है और इसमें 15,693 पंक्तियाँ हैं।

संक्षेप में इस महाकाव्य की कथावस्तु इस प्रकार है : ईलियन के राजा प्रियम के पुत्र पेरिस ने स्पार्टा के राजा मेनेलाउस की पत्नी परम सुंदरी हेलेन का उसके पति की अनुपस्थिति में अपहरण कर लिया था। हेलेन को पुन: प्राप्त करने तथा ईलियन को दंड देने के लिए मेनेलाउस और उसके भाई आगामेम्नन ने समस्त ग्रीक राजाओं और सामंतों की सेना एकत्र करके ईलियन के विरुद्ध अभियान आरंभ किया। परंतु इस अभियान के उपर्युक्त कारण, और उसके अंतिम परिणाम, अर्थात्‌ ईलियन के विध्वंस का प्रत्यक्ष वर्णन इस काव्य में नहीं है। इसका आरंभ तो ग्रीक शिविर में काव्य के नायक एकिलीज के रोष से होता है। अगामेम्नन ने सूर्यदेव अपोलो के पुजारी की पुत्री को बलात्कारपूर्वक अपने पास रख छोड़ा है। परिणामत: ग्रीक शिविर में महामारी फैली हुई है। भविष्यद्रष्टा काल्कस ने बतलाया कि जब तक पुजारी की पुत्री को नहीं लौटाया जाएगा तब तक महामारी नहीं रुकेगी। अगामेम्नन बड़ी कठिनाई से इसके लिए प्रस्तुत होता है पर इसके साथ ही वह बदले में एकिलीज़ के पास से एक दूसरी बेटी ब्रिसेइस को छीन लेता है। एकिलीज़ इस अपमान से क्षुब्ध और रुष्ट होकर युद्ध में न लड़ने की प्रतिज्ञा करता है। वह अपनी मीरमिदन (पिपीलिका) सेना और अपने मित्र पात्रोक्लस के साथ अपने डेरों में चला जाता है और किसी भी मनुहार को नहीं सुनता। परिणामत: युद्ध में अगामेम्नन के पक्ष की किरकिरी होने लगती है। ग्रीक सेना भागकर अपने शिविर में शरण लेती है। परिस्थितियों से विवश होकर अगामेम्नन एकिलीज़ के पास अपने दूत भेजता है और उसके रोष के निवारण के लिए बहुत कुछ करने को तैयार हो जाता है। परंतु एकिलीज़ का रोष दूर नहीं होता और वह दूसरे दिन अपने घर लौट जाने की घोषणा करता है। पर वास्तव में वह अगामेम्नन की सेना की दुर्दशा देखने के लिए ठहरा रहता है। किंतु उसका मित्र पात्रोक्लस अपने पक्ष की इस दुर्दशा को देखकर को देखकर खीझ उठता है और वह एकिलीज़ से युद्ध में लड़ने की आज्ञा प्राप्त कर लेता है। एकिलीज़ उसको अपना कवच भी दे देता है और अपने मीरमिदन सैनिकों को भी उसके साथ युद्ध करने के लिए भेज देता है। पात्रोक्लस ईलियन की सेना को खदेड़ देता है पर स्वयं अंत में वह ईलियन के महारथी हेक्तर द्वारा मार डाला जाता है। पात्रोक्लस के निधन का समाचार सुनकर एकिलीज़ शोक और क्रोध से पागल हो जाता है और अगामेम्नन से संधि करके नवीन कवच धारण कर हेक्तर से अपने मित्र का बदला लेने युद्ध क्षेत्र में प्रविष्ट हो जाता है। एकिलीज़ से युद्ध आरंभ करते ही पासा पलट जाता है। वह हेक्तर को मार डालता है और उसके पैर को अपने रथ के पिछले भाग से बाँधकर उसके शरीर को युद्धक्षेत्र में घसीटता है जिससे उसका सिर घूल में लुढ़कता चलता है। इसके पश्चात्‌ पात्रोक्लस की अंत्येष्टि बड़े ठाट बाट के साथ की जाती है। एकिलीज़ हेक्तर के शव को अपने शिविर में ले आता है और निर्णय करता है कि उसका शरीर खंड-खंड करके कुत्तों को खिला दिया जाए। हेक्तर का पिता ईलियन राजा प्रियम उसके शिविर में अपने पुत्र का शव प्राप्त करने के लिए उपस्थित होता है। उसके विलाप से एकिलीज़ को अपने पिता का स्मरण हो आता है और उसका क्रोध दूर हो जाता है और वह करुणा से अभिभूत होकर हेक्तर का शव उसके पिता को दे देता है और साथ ही साथ 1२ दिन के लिए युद्ध भी रोक दिया जाता है। हेक्तर की अंत्येष्टि के साथ ईलियद की समाप्ति हो जाती है।

कुछ हस्तलिखित प्रतियों में ईलियद के अंत में एक पंक्ति इस आशय की मिलती है कि हेक्तर की अंत्येष्टि के बाद अमेज़न (निस्तनी) नामक नारी योद्धाओं की रानी पैंथेसिलिया प्रियम की सहायता के लिए आई। इसी संकेत के आधार पर स्मर्ना के क्विंतुस नामक कवि ने 14 पुस्तकों में ईलियद का पूरक काव्य लिखा था। आधुनिक समय में श्री अरविंद घोष ने भी अपने जीवन की संध्या में मात्रिक वृत्त में ईलियन नामक ईलियद को पूर्ण करनेवाली रचना का अंग्रेजी भाषा में आरंभ किया था जो पूरी नहीं हो सकी। नवम पुस्तक की रचना के मध्य में ही उनकी चिरसमाधि की उपलब्धि हो गई।

ईलियद में जिस युग की घटनाओं का उल्लेख है उसको वीरयुग कहते हैं। श्लीमान और डेफैल्ट को ट्राय नगर की खुदाई के पश्चात्‌ इस युग की सत्यता निर्विवाद सिद्ध हो चुकी थी। ई.पू. 13वीं और 13 शताब्दियाँ इस युग का काल मानी जाती हैं। पर ईलियद के रचनाकाल की सीमाएँ ई.पू. नवीं और सातवीं शताब्दियाँ हैं। होमर की रचनाओं से संबंध रखनेवाली समस्याएँ अत्यंत जटिल हैं। एक समय होमर के अस्तित्व तक पर संदेह किया जाने लगा था। पर अब स्थिति अधिक अनुकूल हो चली है, यद्यपि अब भी होमर के महाकाव्य एक विकासक्रम की चरम परिणति माने जाते हैं जिनमें एक लोकोत्तर प्रतिभा का कौशल स्पष्ट लक्षित होता है।

ईलियद में महाकाव्य की दृष्टि से सरलता और कविकर्म का अभूतपूर्व सामंजस्य है। नीति की दृष्टि से असाधारण काम और क्रोध के विध्वंसकारी परिणाम का प्रदर्शन जैसा इस काव्य में हुआ हे वैसा अन्यत्र मुश्किल से मिलेगा। इसके पुरुष पात्रों में अगामेम्नन, एकिलीज़, पात्रोक्लस, मेनेलाउस, प्रियम, पेरिस और हेक्तर उल्लेखनीय हैं। स्त्री पात्रों में हेलेन, हेकुबा, आंद्रोमाको इत्यादि महान हैं। युद्ध में मनुष्य और देवता सभी भाग लेते हैं, कहीं मनुष्य गुणों में देवताओं से ऊँचे उठ जाते हैं तो कहीं देवता लोग मानवीय दुर्बलताओं के शिकार होते दृष्टिगोचर होते हैं एवं परिहास के पात्र बनते हैं। भारतीय महाकाव्यों के साथ ईलियद की अनेक बातें मेल खाती हैं, जिनमें हेलेन का अपहरण और ईलियन का दहन सीता-हरण और लंकादहन से स्पष्ट सादृश्य रखते हैं। संभवत: इसी कारण मेगस्थनीज़ को भारत में होमर के महाकाव्यों के अस्तित्व का भ्रम हुआ था।

होमर के अनुवाद बहुत हैं परंतु उसका अनुवाद, जैसा प्रत्येक उच्च कोटि की मौलिक रचना का अनुवाद हुआ करता है, एक समस्या है। यदि अनुवादक सरलता पर दृष्टि रखता है तो होमर के कवित्व को गँवा बैठता है और कवित्व को पकड़ना चाहता है तो सरलता काफूर हो जाती है।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-मूलमात्र : मुनरों और एलेन का आक्सफोर्ड का संस्करण। सानुवाद : लोएब क्लासिकल लाइब्रेरी का संस्करण। सुलभ सस्ते अनुवाद : रिव्यू पैंग्विन और राउज़ (मैटर) के संस्करण।आलोचना : गिल्बर्ट मरे, ऐंशेंट ग्रीक लिटरेचर; नौर्वुड : राइटर्स ऑव ग्रीस; बाउरा : ऐंशेंट ग्रीक लिटरेचर।