उद्गाता
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उद्गाता
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 99 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | बलदेव उपाध्याय |
उद्गाता का अर्थ है, उच्च स्वर से गानेवाला। सोमयज्ञों के अवसर पर साम या स्तुति मंत्रों के गाने का कार्य 'उद्गाता' का अपना क्षेत्र है। उसके लिए उपुयक्त मंत्रों का संग्रह 'साम संहिता' में किया गया है। ये ऋचाएँ ऋग्वेद से ही यहाँ संगृहीत की गई हैं और इन्ही ऋचाओं के ऊपर साम का गायन किया जाता है। साम गायन की पद्धति बड़ी शास्त्रीय तथा प्राचीन होने से कठिन भी है। साम पाँच अंगों में विभक्त होता है जिनके नाम हैं-(1) प्रस्ताव, (2) उद्गीथ, (3) प्रतिहार, (4) उपद्रव तथा (5) निधन। इनमें उद्गीथ तथा निधन के गायन का कार्य उद्गाता के अधीन होता है और प्रस्ताव तथा प्रतिहार के गाने का काम क्रमश: 'प्रस्तोता' तथा 'प्रतिहर्ता' नामक ऋत्विजों के अधीन रहता है जो उद्गाता के सहायक माने जाते हैं। गान मुख्यतया चार प्रकार के होते हैं-(1) (ग्रामे) गेय गान (= प्रकृति गान यो वेय गाथ); (2) अरण्य गान; (3) ऊह गान तथा (4) ऊह्य गान। इन समग्र गानों से पूर्ण परिचय रखना उद्गाता के लिए नितांत आवश्यक होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ