उद्दंडपुर
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उद्दंडपुर
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 99 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | ओंकारनाथ उपाध्याय |
उद्दंडपुर बिहार प्रांत में वर्तमान बिहार नाम का कस्बा जो बख्तियारपुर से राजगिरि जानेवाली रेलवे की छोटी लाइन पर पड़ता है। यह नालंदा से छह-सात मील की दूरी पर है। नालंदा की ही भाँति यहाँ भी बौद्धों का विशाल मठ था जहाँ के बिहार में अनेक भिक्षु रहते और बौद्ध दर्शन का मनन करते थे। कुछ लोगों ने इसे भी छोटा मोटा बौद्धविद्यालय ही माना है। यहाँ भी प्राचीन टीलों की खोदाई से अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इस विहार का व्यय बंगाल के पाल राजाओं की दी हुई देवोत्तर संपत्ति से चलता था। कन्नौज के प्रतिहारों ने इसे एक बार पालों से छीन लिया था पर कन्नौज की गद्दी के लिए परस्पर जूझते भोज द्वितीय और महिपाल की अनवधानता से लाभ उठाकर पालनरेश नारायणपाल ने इस फिर जीत लिया। बख्तियार खिलजी ने नालंदा के बौद्ध विहार का नाश करते समय उद्दंडपुर का भी अंत कर दिया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ