उपगुप्त
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उपगुप्त
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 110 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलासचंद्र शर्मा |
उपगुप्त एक बौद्ध भिक्षु। इन्हें 'अलक्षणक बुद्ध' भी कहा जाता है। ये वाराणसी के गुप्त नामक इत्र विक्रेता के पुत्र थे। 17 वर्ष की अवस्था में संन्यास लेकर इन्होंने योगसाधना की और काम पर विजय प्राप्त करने के उपरांत समाधिकाल में भगवान् बुद्ध के दर्शन किए। मथुरा के समीप नतभक्तिकारण्य में उरुमुंड या रुरुमुंड पर्वत पर इन्हें उपसंपदा हुई और वहीं उपगुप्त विहार नामक बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध प्रचारकेंद्र बना। बोधिसत्वावदानकल्पलता में उल्लेख है कि इन्होंने 18लाख व्यक्तियों को बौद्ध धर्म से दीक्षित किया था। उतत्री बौद्ध परंपरा के अनुसार ये सम्राट् अशोक के धार्मिक गुरु थे और इन्होंने ही अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। दिव्यावदान के अनुसार चंपारन, लुंबिनीवन, कपिलवस्तु, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, जेतवन आदि बौद्ध तीर्थस्थलों की यात्रा के समय उपगुप्त अशोक के साथ थे। उल्लेख मिलते हैं कि पाटलिपुत्र में आयोजित तृतीय बौद्ध संगीति में उपगुप्त भी विद्यमान थे। इन्होंने ही उक्त संगीति का संचालन किया और कथावस्तु की रचना अथवा संपादन किया। संभवत: इसीलिए कुछ विद्वानों में मोग्गलिपुत्त तिस्स तथा उपगुप्त को एक ही मान लिया है, क्योंकि अनेक बौद्ध ग्रंथों में तृतीय संगीति के संचालन एवं कथावस्तु के रचनाकार के रूप में तिस्स का ही नाम मिलता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ