उरार्तू

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लेख सूचना
उरार्तू
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 138
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवतशरण उपाध्याय

उरार्तू वर्तमान आर्मीनिया का प्राचीन असूरी नाम। उस देश का यह नाम आज भी उसके पर्वत अरारात के नाम से ध्वनित है। यह महत्व की बात है कि स्वयं उरार्तू के निवासी अपने कीलाक्षरोंवाले अभिलेखों में अपने को 'ख़ल्दिनी' कहते हैं। विद्वानों का मत है कि अधिकतर वहाँ के रहनेवाले पश्चिम से आकर आराक्सिज नदी की घाटी में बस गए थे जो न तो जाति के सामी ही थे, न आर्य ही। उरार्तू के राजाओं से बढ़ती हुई असूरी शक्ति का बार-बार संघर्ष हुआ और बार-बार उरार्तू को पराभूत होना पड़ा। उरार्तू के राज्य का ऐतिहासिक आरंभ 1000ई.पू. के आसपास माना जा सकता है।

उरार्तू के राजाओं में सबसे शक्तिमान्‌ इस्पुइनिस का बेटा मेनुआस हुआ। उसके जीवन का सबसे प्रधान कार्य 'शमीराम्सू' नामक नहर का निर्माण था जिससे उस देश में मीठे पेय जल का प्रादुर्भाव हो सका। उसके पुत्र अर्गिस्तिस प्रथम ने अपने 14वर्षों के शासन और युद्धों का वृत्तांत वान की शिला पर खुदवाया। उरार्तू का दूसरा शक्तिमान्‌ राजा 8वीं सदी ई.पू. में रूसस प्रथम हुआ जो असूरिया के राजा सारगोन द्वितीय का प्रबल शत्रु था।

714ई.पू. में कोहकाफ़ के दर्रों से निकलकर किमेरियों ने उरार्तू पर प्रबल आक्रमण किया और रूसस को मजबूर होकर आत्महत्या करनी पड़ी। रूसस के पोते रूसस द्वितीय ने किमेरियों को अपनी सेवा में भर्ती कर असूरिया से युद्ध किया, फिर उन्हें लघु एशिया के पश्चिमी भागों की ओर भाग दिया। छठी सदी ई.पू. में मोदी आर्यों ने उरार्तू को रौंद डाला।

खल्दी संभवत: पश्चिमी लघु एशिया की ओर से आए थे और स्वयं प्राचीन ईजियाई सभ्यता से प्रभावित थे। आर्य ग्रीकों को उन्होंने पहले स्वयं प्रभावित किया और जब उनके देश उरार्तू पर उस अरमीनी जाति ने विजय पाई, जिसने उसे उसका पिछला नाम अर्मीनिया दिया, तब खल्दी अपना वह देश छोड़ पहाड़ों में जा बसे। उरार्तू का उल्लेख बाइबिल में भी हुआ। उसी के अरारात पर्वत शिखर से, बाइबिल के अनुसार, जलप्रलय के अवसर पर हजरत नूह की जीवों के जोड़ों से भरी नौका जा लगी थी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ