एलिफ़ैंटा
एलिफ़ैंटा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 252 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्यामसुंदर शर्मा |
एलिफ़ैंटा बंबई बंदरगाह से पूर्व की ओर 6 मील पर एक टापू है। इसकी परिधि 5 मील है। यहाँ अवकाश पाकर बंबई नगर की हलचल से ऊबकर सैर के लिए मोटरबोट से लोग आया करते हैं।
इसकी प्रसिद्धि लावा चट्टान में काटे गए गुफा मंदिर के कारण है। यहाँ इमारती पत्थरों की कटाई की कई खदानें हैं। इसकी सबसे ऊँची चोटी 568 फुट है।
गुफा मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं। प्रधान गुफा की देहली 60 फुट चौड़ी और 18 फुट ऊँची है। छत चट्टान काटकर बनाए गए स्तंभों पर टिकी है। स्तंभों पर देवी देवताओं की विशालकाय मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। प्रधान मंदिर में भव्य त्रिमूर्ति विराजित है। मूर्तियों के मस्तक चार पाँच फुट लंबे और बड़े ही कलात्मक ढंग से निर्मित हैं। चूड़ा का श्रृंगार विचित्र ही है। एक मूर्ति के हाथ में नाग, मस्तक पर एक मानव खोपड़ी और एक शिशु हैं। इस त्रिमूर्ति के पास ही अर्धनारीश्वर की 16 फुट ऊँची मूर्ति है। दाईं ओर कमलासीन चतुर्मुख ब्रह्मा की मूर्ति है और बाईं ओर विष्णु भगवान् हैं। दूसरी ओर भी एक गुहागृह है जिसमें शंकरपार्वती की कई मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। सबसे विशाल और लोमहर्षक, अष्टभुज शंकर की तांडवनृत्यरत मूर्ति है।
एलिफ़ैंटा की मूर्तिसंपदा गति और शालीनता की दृष्टि से एलोरा की मूर्तियों से कुछ कम नहीं। यद्यपि 16वीं सदी में पुर्तगालियों के नृशंस आचरण से गुफा की मूर्तियाँ अनेकत: टूट गई हैं, फिर भी जो बच रही हैं उनसे मध्य-पूर्वकाल की मूर्तन कला के गौरव का पर्याप्त परिचय मिलता है। प्राय: 90 फुट एक दिशा में कटी इस सागरवर्ती गुफा की छह छह स्तंभोंवाली छह कतारें मानों उसकी छत सिर से उठाए हुए हैं। वैसे तो शिवपरिवार की अनेक मूर्तियाँ वहाँ दर्शनीय हैं पर लगभग आठवीं सदी ई. में कोरी शिव की सर्वतोभद्रिका त्रिमूर्ति अपने प्रकार की मूर्तियों में बल और रूप में असाधारण है। भारी, गंभीर, चिंतनशील मस्तक बोझिल पलकोंवाले नेत्रों से जैसे नीचे देख रहा है। होंठ गुप्तोत्तरकालीन सौंदर्य में भरे भरे कोरे गए हैं। इस त्रिमूर्ति को अक्सर गलती से ब्रह्मा, विष्णु और शिव माना गया है, पर वस्तुत: है यह मात्र शिवपरिवार। एक ओर अघोर भैरव संसार के संहारकर्ता के रूप में प्रस्तुत हैं, दूसरी और पार्वती का आकर्षक तरुण मस्तक है और दोनों के बीच दोनों के संतुलन से मंडित कल्याणकारी शंकर हैं। यह त्रिमूर्ति भारत के सभी काल की सुंदर मूर्तियों में अपना स्थान रखती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ