एस्ते
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एस्ते
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 262 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | मुहम्मद अजहर असगर अंसारी |
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एस्ते इटली के प्राचीनतम राजवंश का नाम। कदाचित् ये लोग लोंबार्दी के थे। इस वंश ने इटली के पुनर्जागरण युग में बड़े काम किए। ओबित्सोई पहला राजा था जिसने 'एस्ते का मार्कुइस' की उपाधि धारण की। इसने सम्राट् फ्रेडरिक के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया। उसका देहांत 1194 ई. में हुआ। उसके उत्तराधिकारी के काल में एस्ते नगर में विद्रोह ही विद्रोह होते रहे। इसके बाद राजगद्दी पर तृतीय निकोलस बैठा। 1384 से लेकर 1441 तक उसके हाथ में बागडोर रही। इसने फ़ेरारा, मोदनेना, पारमा और रेग्गियो पर भी शासन किया और कई लड़ाइयाँ लड़ीं। तदनंतर बोर्सो (1413-1471) गद्दी पर बैठा। उसके शासनकाल में कई युद्धों के बाद भी फ़ेरारा में शांति रही और देश में धन आता रहा। उसने साहित्य की भी सेवा की। उस नगर में उसने छापाखाना खोला, विद्वानों को एकत्रित किया और कल कारखानों को प्रोत्साहित किया।
एरकोले प्रथम (1431-1505) उसका उत्तराधिकारी हुआ। प्रसिद्ध कवि बोइआर्दो उसका मंत्री था। अरिओस्तो की भी उसने सहायता की। उसकी लड़की बीत्रिस का नाम इटली के पुनर्जागरण युद्ध में प्रसिद्ध है। उसने निकोलो दा कोरिज़्ज़ो, बेर्नार कास्तिग्लिओने, ब्रामांते और लियोनार्दो दा विंशी जैसे कलाकारों और साहित्यकारों को आश्रय दिया। मलाँ नगर का कातेल्लो और पाविया का चरटूसा उसकी अमर सेवाओं में से है।
अलफ़ांसो प्रथम (1486-1534) अपने यंत्रज्ञान के लिए प्रसिद्ध हुआ। उसके तोपखाने बड़े प्रभावशाली थे। एरकोले द्वितीय (1508-59) और उसके भाई ने साहित्य और कला की बड़ी सेवा की। उनके शासनकाल में त्रियोस्ते में विलादेस्ते का निर्माण हुआ। अलफ़ासी प्रथम का उत्तराधिकारी अलफ़ांसी द्वितीय (1533-1597) हुआ। उसका नाम तास्सो की सेवा के संबंध में बहुत लिया जाता है। उस परिवार का यही अंतिम राजा था। इसके बाद इसका प्रभाव इटली की राजनीति से उठ गया। लगभग 200 साल तक इस परिवार ने इटली की राजनीति में बड़ा भाग लिया और विश्वख्याति प्राप्त की।
टीका टिप्पणी और संदर्भ