ओडिन
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ओडिन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 293 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलाशचंद्र शर्मा |
ओडिन अथवा ओथिन टयूटन जातीय मिथकशास्त्र में एकाक्ष आदिम कुलपिता तथा देवेश जिसे प्रज्ञा एवं युद्ध का अधिपति माना जाता है। उत्तरी यूरोपवासियों के अनुसार ओडिन बोर्र देवता का बेस्टला दानवी से उत्पन्न पुत्र है। फ्ऱग ओडिन की प्रमुख पत्नी तथा पटरानी है जिससे उसके थोर तथा बाल्डर नामक पुत्र पैदा हुए। इसके अतिरिक्त, विभिन्न स्त्रियों से उत्पन्न उसके और भी अनेक पुत्रों के नाम मिलते हैं जिन्हें 'गर्दभमुखी देवताओ' के समूह में रखा जाता है। इतना ही नहीं, वह अनेक निजंधरी राजाओं का पिता भी माना जाता है।
विली तथा वी नामक अपने भाइयों की सहायता से ओडिन ने ईमिर नाम के दैत्य का वध किया और उसके रक्त से महासागरों, मांस से पृथ्वी, अस्थियों से पर्वतों एवं चट्टानों, खोपड़ी से आकाश तथा मस्तिष्क से बादलों का निर्माण किया। मानवजाति को ओडिन ने एक विशेष प्रकार के भस्मतथा देवदारु के वृक्ष से बनाया। उसका वर्णन प्राय: लंबे केशधारी अथवा धूसर दाढ़ीवाले 50 वर्षीय खल्वाट किंतु चुस्त देवता के रूप में मिलता है। वह एक धौला सा चोगा तथा नीली टोपी पहनता है। अंगुली में ड्रापनिर नाम की जादुई अंगूठी पहने और गंगनिर नामक भाले को हाथ में लेकर अपने अष्टपाद अश्व स्लीपनिर पर सवार होकर वह इधर-उधर घूमता है।
देवेश की हैसियत से ओडिन स्वर्गस्थित ग्लैडशीम नाम के विशाल कक्ष में देवताओं की गोष्ठी की अध्यक्षता करता है। उसके एक कंधे पर हगिन (विचार) तथा दूसरे पर ममिन (स्मृति) नामक द्रोणकाक बैठते हैं और उसे विश्व के बारे में वे सभी सूचनाएँ देते हैं जो उन्होंने पृथ्वी के ऊपर अपनी उड़ान के दौरान एकत्र की होती हैं। उसके पैरों के पास गेरी तथा फ्ऱेकी नामक भेड़िए लेटे रहते हैं।
ओडिन अत्यधिक ज्ञानपिपासु है। उसने ज्ञान-जल-परिपूरित मिमिर के कुएँ से एक बाल्टी जल प्राप्त करन के बदले अपनी एक आँख दे डाली थी। लगातार नौ दिन तक वह ईगड्रेसिल से लटककर निवलहेम की बर्फभरी गहराइयों को टकटकी लगाए देखता रहा था और इससे ही उसने टोने तथा मंत्र सीखने की कला का ज्ञान प्राप्त किया था जिसके कारण वह जादूगर के रूप में माना जाता था। बौनों द्वारा क्वासिर के रक्त से निर्मित काव्य मधु को उपलब्ध करने के लिए ओडिन ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी और वनिर ने जब मिमिर (बुद्धि का प्रतीक) का कटा हुआ सिर असगार्ड (स्वर्ग) भेजा तो ओडिन ने उसे मंत्रों एवं जड़ीबूटियों के प्रयोग से जीवित रखा तथा उससे भविष्य का रहस्य ज्ञात करता रहा। एक बार एक जटिल प्रश्न का उत्तर पाने के लिए जान पर खेलकर वह स्वयं नरक गया। फाँसी पर लटके प्राणियों के नीचे बैठकर वह उनके ज्ञान को पी जाने का आदी है।
युद्ध के देवता के रूप में ओडिन सुनहरे लाल रंग का अँगरखा पहनकर वालहाल में बैठता है और प्राय: अपने गिने चुने योद्धाओं के साथ युद्धस्थल में जाकर जीतनेवालों तथा मरनेवालों के भाग्य का निपटारा करता है।
पश्चिम यूरोप तथा स्कैंडिनेविया के जनसामान्य ओडिन के नाम से परिचित हैं परंतु उसकी पूजा संभवत: पहले पहल जर्मनी के निचले भागों में प्रारंभ हुई होगी और सैनिक क्षेत्रों में उसे विशेष महत्व दिया गया होगा क्योंकि उसके आरंभिक वर्णन एक ऐसे देवता के रूप में मिलते हैं जो युद्ध में हर व्यक्तियों की आत्माओं का हार्दिक स्वागत करता है और वालहाल में उनके रहने का समुचित प्रबंध भी करता है जहाँ उक्त आत्माएँ परस्पर युद्ध करते हुए तथा दावतें उड़ाते हुए समय व्यतीत करती हैं। ईसाई मतावलंबी ओडिन तथा शैतान को परस्पर अभिन्न मानते हैं। आँग्ल सैक्सन जाति के लोग उसे वोडन या वाउटन नाम से जानते हैं और उनका विश्वास है कि रोगों की उत्पत्ति उन विषाक्त कीटाणुओं से होती है जो नरक के उस नवम भाग से उड़कर संसार में पहुँचते हैं जहाँ ओडिन ने एकअति विषाक्त अजदहे की बोटी-बोटी काटकर सुरक्षित रख दी थी। बहरहाल, यूरोप के विभिन्न भागों में ओडिन लगभग 200 विभिन्न नामों से प्रख्यात है और जनमानस में उसकी प्रतिष्ठा एक सशक्त देवाधिपति के रूप में वर्तमान है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ