कंक्रीट की सड़क

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लेख सूचना
कंक्रीट की सड़क
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 341-342
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक कंक्रीट रोड्स, एफ़.एन. स्पार्क्‌स ऐंड ए.एफ़. स्म्थि, ए.जी. ब्रूस ऐंड जे. क्लार्कसन, एल.आई. हीवेस, एल.जे. रिटर ऐंड आर.जे. पाक्वेटे
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1975 ईसवी
स्रोत कंक्रीट रोड्स: डिज़ाइन ऐंड कंस्ट्रक्शन, 1955, हिज़ मैजेस्टीज़ स्टेशनरी ऑफ़िस, लंदन; एफ़.एन. स्पार्क्‌स ऐंड ए.एफ़. स्म्थि: कंक्रीट रोड्स (1952); द रोड मेकर्स लाइब्रेरी, एडवर्ड आर्नल्ड ऐंड कंपनी, लंदन; ए.जी. ब्रूस ऐंड जे. क्लार्कसन: हाइवे डिज़ाइन ऐंड कंस्ट्रक्शन (1950); इंटरनैशनल टेक्स्ट बुक कंपनी, पी.यू.एस.ए.; एल.आई. हीवेस: अमरीकन हाइवे प्रैक्टिस, जॉन विले ऐंड संस इंक., न्यूयार्क; एल.जे. रिटर ऐंड आर.जे. पाक्वेटे: हाइवे इंजीनियरिंग, द रोनल्ड प्रेस कं., न्यूयॉर्क।
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक जगदीश मित्र त्रेहन

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कंक्रीट की सड़क भवनादि के निर्माण में कंक्रीट की विशेषता यह है कि जब यह सुघट्यावस्था में रहता है तब यह किसी भी आकृति में सुगमता से ढाला जा सकता है। इसके इसी गुण के कारण सड़कों के निर्माण तथा पुल, पुलिया, पुश्ता, दीवारों (रिटेनिंग वाल) इत्यादि के निर्माण में इसका उपयोग अत्यधिक होता है।

सड़कों के फर्श बनाने में कंक्रीट का गुण यह है कि यह बहुत दिन तक चलता है, घिसता-पिसता कम है, चिकना होता है एवं गाड़ियों के चलने में बहुत कम अवरोध उत्पन्न करता है। इसकी मरम्मत में बहुत कम पैसा लगता है। सड़क दूर तक दिखाई पड़ती है। यदि कभी सड़क को तोड़ना पड़े तो पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो जाती है। कंक्रीट की सड़कों का उपयोग करनेवालों को इसके चिकनेपन, घड़घड़ाहट की कमी और धूल की अनुपस्थिति से सुविधा रहती है। कंक्रीट की गीली सड़कों पर से फिसलर का डर भी अन्य प्रकार की सड़कों की अपेक्षा कम रहता है।

आकल्पन

कंक्रीट की सड़कों का आकल्पन (डिज़ाइन) करते समय इसकी मोटाई, संधियों और लोहे की छड़ों से प्रबलन (रिइन्फ़ार्समेट) पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। ये सभी बातें स्थानीय दशाओं पर, जैसे मिट्टी, गाड़ियों के प्रकार और जलवायु पर, निर्भर हैं। कंक्रीट की सिल्ली का ठीक आचरण कई एक बातों पर निर्भर करता है, यथा कंक्रीट के अवयवों के गुण, कंक्रीट के नीचे की मिट्टी, इसपर चलनेवाली गाड़ियों का भार और ऋतुओं की भिन्नता। कंक्रीट की संपीडनचलनेवाली गाड़ियों का भार और ऋतुओं की भिन्नता। कंक्रीट की संपीडनक्षमता अपेक्षाकृत अधिक है, परंतु तनाव में यह दुर्बल पड़ता है, अत: यह परमावश्यक है कि कंक्रीट के नीचे की भूमि सर्वत्र समान रूप से ऊपर के बोझ से सँभाले। अन्य पदार्थों की तरह कंक्रीट भी गर्मी से फैलता और ठंड से सिकुडता है। कंक्रीट की सिल्ली के ऊपरी और निचले पृष्ठों के तापों में जो ऐंठन और मुड़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती रहती है। इन तथा अन्य जटिलताओं के कारण कंक्रीट की सड़क में उत्पन्न होनेवाले बलों की सैद्धांतिक गणना अति कठिन है। इसलिए कंक्रीट की सड़कों की अभिकल्पना साधारणत: अनुभवप्राप्त सूत्रों से की जाती है।

कंक्रीट की सड़कों को लोहे की छड़ों से साधारणत: उनकी पुष्टता बढ़ाने के लिए प्रबलित नहीं किया जाता; वरन्‌, इन छड़ों का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि सड़कें बहुत फटें नहीं और यदि फटें भी तो टुकड़े परस्पर सटे रहें। सड़कों में निर्धारित दूरियों पर आड़ी संधि देनी पड़ती है, लोहे की छड़ों का प्रयोग होने पर ये संधियाँ पर्याप्त दूर-दूर रखी जा सकती हैं।

संधियाँ

कंक्रीट में जल की न्यूनाधिक मात्रा और उसके ताप में घट बढ़ से उत्पन्न प्रसरण अथवा सिकुड़न तथा ऐंठन थोड़ी बहुत हो सके इसलिए सड़कों में निर्धारित दूरी पर संधियाँ दे दी जाती हैं। संधियाँ प्रधानत: तीन प्रकार की होती हैं : प्रसरण संधियाँ, सिकुड़न संधियाँ और लंबाई के अनुदिश संधियाँ।

100 से लेकर 150 फुट के अंतर पर जो आड़ी संधियाँ दी जाती हैं, वे प्रसरण के लिए दी जाती हैं। साधारणत: इन संधियों में कोई संपीड्य (कंप्रेसिबल) पदार्थ इस प्रकार भर दिया जाता है कि ऊपर से पानी घुसने के लिए कोई मार्ग न रहे। संधि के एक पार से दूसरे पार, बिना झटके के बोझ पहुँचाने के निमित्त इस पार की कई एक छड़ें सड़क की लंबाई की दिशा में लगा दी जाती हैं। संधि के दोनों ओर की सड़क में ये डूबी रहती हैं।

पूर्वोक्त प्ररण संधियों के बीच में सिकुड़न संधियाँ दी जाती हैं। ये संधियाँ साधारणत: झूठी (डमी) संधियाँ होती हैं। यहाँ पर कंक्रीट की सिल्ली दुर्बल कर दी जाती है, जिसमें यदि कभी ताप के अधिक गिर जाने से अथवा अन्य किसी कारण से कंक्रीट सिकुड़े तो अनियमित रूप से टूटने के बदले सीधी रेखा में पूर्वोक्त झूठी संधि पर ही टूटे। इसके लिए कंक्रीट की सिल्ली के ऊपर, अथवा ऊपर तथा नीचे दोनों ओर, एक खाँचा (गड्डा) बना लिया जाता है।

जो सड़कें 15 फुट से अधिक चौड़ी होती हैं, उनमें सड़क के अनुदिश एक या अधिक संधियाँ इसलिए डाल दी जाती हैं कि कंक्रीट थोड़ा बहुत ऐंठ सके और यदि नीचे की भूमि कहीं धँसे तो कंक्रीट की सिल्ली टूटे नहीं, उसका केवल एक खंड बैठ जाए।

निर्माण और मरम्मत

कंक्रीट की सड़क हाथ से अथवा मशीन से बनाई जाती है। नीचे की भूमि पूर्णत: दृढ़ और चौरस होनी चाहिए, पुरानी सड़क हो तो और भी अच्छा। मशीन से कंक्रीट बिछाना अधिक अच्छा होता है और प्रतिदिन इसका चलन बढ़ रहा है। अच्छी चिकनी कंक्रीट की सड़क के लिए अच्छी कारीगरी की आवश्यकता है। यह आवश्यक है कि कंक्रीट वांछित पुष्टता की हो। ऊपरी सतह की ढाल ठीक हो और पृष्ठ चिकना हो। संधियाँ नियमानुसार बनी हों और अपेक्षित काल तक कंक्रीट को पानी से तर रखा जाए। अच्छी अभिकल्पना के अनुसार उचित प्राकर से बनाई गई सड़क बहुत टिकाऊ होती है, मरम्मत बहुत कम करनी पड़ती है, सो भी साधारणत: यही कि संधियाँ पूर्ववत्‌ बनी रहें। ये संधियाँ, और यदि सड़क कहीं चटख जाए तो नवीन संधियाँ भी, अच्छी प्रकार संपीड्य पदार्थ से भर दी जानी चाहिए।

सड़क निर्माण के लिए सीमेंट कंक्रीट का प्रयोग भारत में थोड़े ही वर्षों से हो रहा है। भारत में कंक्रीट की पहली सड़क मद्रास नगर निगम के कार्यालय के समीप सन्‌ 1914 में बनाई गई थी। इसके थोड़े ही दिनों के पश्चात्‌ (उत्तर प्रदेश) तक जानेवाली पहाड़ी सड़कों के मोड़ों के लिए कंक्रीट का उपयोग हुआ था। हैदराबाद नगर में चौड़ी एवं सुव्यवस्थित 70 मील लंबी कंक्रीट की सड़कें हैं। भारतीय नगरों में बनी कंक्रीट की सड़कों में ये सबसे अधिक लंबी हैं।

भारत में बनी कंक्रीट की सड़कों की कुल लंबाई 1948 ई. में, 3,200 मील के लगभग थी (700 मील राष्ट्रीय राजपथ और 2,500 मील राज्य सड़क)। इनमें से एक सड़क त्रावनकोर और कन्याकुमारी अंतरीप के बीच, पश्चिम तट की बगल में अत्यंत सुरम्य प्रदेश में बनी हुई राष्ट्रीय राजपथ की सड़क है।

पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट की सड़कें-अर्वाचीन वर्षों में पूर्वप्रतिबलीकरण का सिद्धांत कंक्रीट की सड़कों में भी चलाया गया है। किंतु भारत में अभी यह प्रयोगात्मक स्तर पर ही है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

“खण्ड 2”, हिन्दी विश्वकोश, 1975 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 341-342।