कटक
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कटक
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 366 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रामलोचन सिंह |
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कटक उड़ीसा राज्य का एकमात्र प्रसिद्ध नगर है। यह महानदी के त्रिकोण (डेल्टा) पर स्थित है तथा रेल द्वारा कलकत्ता एवं मद्रास से मिला हुआ है। यह उड़ीसा का सबसे पुराना नगर तथा लंबी अवधि तक इस प्रांत की राजधानी रहा है। 1961 ई. में इसकी जनसंख्या 1,46,303 थी। हिंदुकाल में बारावती का किला, जिसका अवशेष अब भी महानदी के किनारे है, नगर का मुख्य केंद्र था। मुस्लिम काल में लालबाग महल का निर्माण हुआ। इससे किले का महत्व घट गया, क्योंकि शासनसंचालन लालबाग महल से होने लगा। अब रेलवे लाइन के बनने से शहर का विस्तार पूरब की तरफ बढ़ रहा है। उड़ीसा की राजधानी का स्थानांतरण भुवनेश्वर हो जाने से कटक का प्रशासकीय महत्व कम हो गया है। राजधानी का स्थानांतरण हो जाने पर भी यह उड़ीसा राज्य की सांस्कृतिक राजधानी है। औद्योगिक दृष्टि से कटक कम विकसित है। हथकरघा से कपड़ा बुनना, लकड़ी के सामान बनाना यहाँ के मुख्य उद्योग धंधे हैं। यहाँ कालेजों की संख्या सात है तथा शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है।
यहाँ की सड़कें नियोजित नहीं हैं, अतएव स्थान-स्थान पर काफी सँकरी हैं। डाक तार की व्यवस्था अच्छी है। साइकिल एवं साइकिल रिक्शा आवागमन के मुख्य साधन हैं। एक व्यक्तिगत कंपनी द्वारा विद्युत्शक्ति की पूर्ति की जाती है पर घरेलू कार्य के लिए बहुत कम लोग बिजली का उपयोग करते हैं।
भारत में अन्य नगरों की तरह इस नगर के सुधार की भी योजना चल रही है जिसके अंतर्गत वर्तमान नगरसीमा के बाहर एक औद्योगिक क्षेत्र बसाने की व्यवस्था है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
“खण्ड 2”, हिन्दी विश्वकोश, 1975 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 366।