किरगीज़ गणतंत्र
किरगीज़ गणतंत्र
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 10 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | शांतिलाल कायस्थ.; परमेश्वरीलाल गुप्त |
किरगीज़ गणतंत्र मध्य एशिया में स्थित सोवियत गणतंत्र का एक राज्य। इसका क्षेत्रफल 1,98,500 किलोमीटर (7,60,460 वर्ग मील) है। इसकी जनसंख्या जनवरी 1971 की गणना के अनुसार 43.7 प्रतिशत तुर्की मूल के किरगीज़, 29.2 प्रतिशत रूसी, 11.3 प्रतिशत उजबेकी, 4.1 प्रतिशत उक्रेनी लोग हैं। तातार, युगर, कज़ाक और ताजिक लोगों की भी कुछ बस्ती है। फ्रूंज़े नामक नगर इसकी राजधानी है। यह गणराज्य इस्सिक कुल, नरीन और ओश नामक तीन प्रशासनिक प्रांतों में विभक्त है।
अधिकांश भूमि उच्च पर्वतीय तथा पठारी है। तियेनशान उच्च पर्वतश्रेणी पूर्व से पश्चिम फैली हुई है। खानतेंग्री तथा माउंट बिक्टरी पर्वतशिखर क्रमश: 6,995 तथा 7,439 मीटर ऊँचे हैं। इस क्षेत्र में हिमानियों की ऊँचाई समुद्रतल से प्राय: 1,200 फुट ऊपर है। इस क्षेत्र के उत्तरी तथा पश्चिमी भागों में अधिक वर्षा होती है। शेष भाग अपेक्षाकृत शुष्क है। प्राकृतिक वनस्पतियों के रूप में ऊँचे पर्वतों पर प्राप्य अल्पाइन तथा उप-अल्पाइन क्षेत्रों के घासवाले चरागाह हैं। वन तथा वन्य पशु अत्यंत विरल हैं।
क्षेत्रफल में छोटा होने पर भी यहाँ विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है-जैसे मरुभूमि एवं उपोष्ण कटिबंधीय। स्टेपी और घने वनयुक्त जलवायु तथा टुंड्रा एवं ध्रुवप्रदेशीय हिमानीयुक्त जलवायु। अत: सोवियत संघ की हर प्रकार की जलवायु इस क्षेत्र में उपलब्ध हैं।
इसके परिणामस्वरूप कोमल मिस्री कपास के पौधे से लेकर कठजीवी टुंडा के अनेक प्रकार के पेड़ पौधे यहाँ उगते हैं। जानवरों में भी मरु भूमीय ऊट से लेकर टैगा क्षेत्र के एरमीन (Armine) तक यहाँ मिलते हैं। जंगली सेब, आलूचा तथा खूबानी स्वत: उगते हें। वनफूलों की प्रचुरता के कारण इस क्षेत्र में मधुमक्खी पालन अत्यंत लाभप्रद है। क्षेत्र की कुल उपयोगी भूमि के लगभग 90% में चरागाह तथा घास प्राप्त होने के कारण भेड़ एवं पशुपालन उद्योग अत्यधिक विकसित प्रमुख धंधे हैं। उन ऊँचे भागों में जहाँ इन पशुओं का चराना संभव नहीं है, दूध और गोश्त के लिये याक पाले जाते हैं। इस प्रदेश के ठिंगने कद के घोड़े भी प्रसिद्ध हैं।
यहाँ खेती के योग्य भूमि केवल 7-8 प्रतिशत है। पर यह घरेलू उपयोग के लिए गेहूँ पैदा करने के लिए पर्याप्त है। गेहूँ के अतिरिक्त सन् चुकंदर, तंबाकू और चावल का भी उत्पादन होता है। खेतिहर उद्योग के साथ-साथ अन्य उद्योगों का भी प्रसार और विकास हुआ है। यहाँ आधुनिक ढंग के कई बड़े कारखाने हैं जिनमें चीनी, चमड़ा, ऊनी और सूती कपड़े, इंजीनियरिंग के सामान और तेल का उत्पादन होता है। पारा, सुरमा, कोयला, तेल, गैस, सीसा और राँगा यहाँ पाए जाने वाले खनिज है। इनमें पारा और सुरमा मुख्य हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ