कीर्तिवर्मा द्वितीय
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कीर्तिवर्मा द्वितीय
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 44 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | वाुिद्धनंद पाठक |
कीर्तिवर्मा द्वितीय चालुक्यों के अवनतिकाल के शासक। उनका राज्यकाल 744-5 से 754-5 ई. तक माना जाता हैं। उन्हें पांड्यों की उठती हुई शक्ति का सामना करना पड़ा था। पांड्यराज राजसिंह प्रथम से उनका संघर्ष हुआ; पांड्यराज की विजय हुई। इस प्रकार दक्षिण में चालुक्यों को पांड्यों के सम्मुख दबना पड़ा। इसी प्रकार उत्तर में उन्हें राष्ट्रकूटों का भी सामना करना पड़ा। राष्ट्रकूटों चालुक्यों को अपनी संप्रभु शक्ति के रूप में स्वीकार करते आ रहे थे, किंतु दंतिदुर्ग के समय उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गई। दंतिदुर्ग ने माही, नर्मदा और महानदी के कूलों को अपना विस्तारक्षेत्र बनाया और अपने को दक्षिणापथ का स्वामी (सम्राट) घोषित कर दिया। कीर्तिवर्मा द्वितीय को हराकर उसने बादामी (वातापीपुर) छीन लिया। इस प्रकार साम्राज्य शक्ति चालुक्यों के हाथों से निकल कर राष्ट्रकूटों के हाथ चली गई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ