कुनैन

अद्‌भुत भारत की खोज
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लेख सूचना
कुनैन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 62
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक किर्क, रेमंड ई. तथा ओथमर, डोनलफ,
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
स्रोत किर्क, रेमंड ई. तथा ओथमर, डोनलफ : एंसाइक्लोपीडिया ऑव केमिकल टेक्नॉलोजी, खंड १; गवर्नमेंट ऑव इंडिया, मिनिस्ट्री ऑव हेल्थ : फार्मेकोपीआ ऑव इंडिया (दिल्ली, १९५५)।
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सद्गोपाल

कनैन वानस्पतिक जगत्‌ में पाया जानेवाला नाइट्रोजनयुक्त, समाक्षार समान, ऐल्कोलॉयड नामक, रासायनिक द्रव्य, जो बहुत ही महत्वपूर्ण और लोककल्याणकारी ओषधि माना जाता है। यह पौष्टिक तथा अग्निवर्धक है। इसका उपयोग गले और सर्दी के विकारों को शांत करने तथा विशेष रूप से मलेरिया ज्वर के श्मन के लिए विविध प्रकार की ओषधियों में किया जाता है। कुनैन रूबिसेइई कुल (Fam. Rubiaceae) के सिकोना लेजरियाना मोइंस (Cinchona ledgeriana Mones), सिंकोना केलिसाया वेड्ड (Cinchona calisaya Wedd) इत्यादि प्रजातियों के पौधों की छाल से अलग किया जाता है। साधारणतया कुनैन इन पौधों की छाल में कुइनिकाम्ल (Quinic acid) और सिंकोटैनिकाम्ल (Cinchotannic acid) के यौगिक में ऐल्केलॉइड रूप में पाया जाता हैं।

सिंकोना के पौधों की छाल में कुनैन की खोज का क्षेय फूरक्र्‌वा (Fourcroy) को १७९२ ई. में प्राप्त हुआ, किंतु इसे विशुद्ध रासायनिक रूप सर्वप्रथम पेल्त्ये (Pelletier) और कावाँटू (Caventou) ने १८२० ई. में दिया।

इसका रासायनिक संघटन निम्नलिखित प्रकार है :

चित्र:कुनैन.gif
कुनैन

कुनैन के रंगविहीन, सुई के सदृश, लंबे मणिभों का गलनांक १७४.४०-१७५.०० सें० और विशिष्ट अवस्थाओं में विशिष्ट घूर्णन-१५८.२० सें० पाया गया है। कुनैन का स्वाद बहुत ही कड़वा होता है और इसके सल्फयूरिक अम्ल के विलयन में विशेष प्रकार के रंग की प्रतिदीप्ति (Fluorescence) दिखाई पड़ती है। इसके प्रकाशीय समावयव (Optical isomer) कुइनिडीन (Quinidine) का गलनांक १७३.५० सें. पाया गया है।

सिंकोना की छाल में से इसके पृथक्करण के लिए छाल को बुझे हुए चूने और दाहक (Caustic) सोडा के ५ प्रतिशत विलयन के साथ पीस लिया जाता है। केरासीन जैसे उपयुक्त विलायकों के साथ ऐल्केलॉइड के अंश को प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से यथासंभव अलग करके विलायक को वाष्पीकरण की क्रिया द्वारा पृथक्‌ कर लिया जाता है। बचे हुए द्रव्यों को थोड़ा गरम और पानी में घुले सल्फयूरिक अम्ल में विलीन कर कुछ समय के लिए अलग रखा जाता है, जिससे तैलीय और रेजिन सदृश पदार्थ छानकर निकाले जा सकें। तत्पश्चात्‌ ऐल्कैलॉइड के अम्लीय यौगिक को विरंजक कार्बन से स्वच्छ करके और विलयन को गाढ़ा बनाकर मणिभ के रूप में अलग कर लिया जाता है। उपयुक्त प्रयोग द्वारा विशुद्ध ऐल्कैलॉइड को भी आवश्यकतानुसार पुनरज्जीवित कर लिया जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ