कुलीन
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कुलीन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 74 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | वशुद्धनंद पाठक |
कुलीन उत्तम कुल में उत्पन्न व्यक्ति। कुल और कुलीन जैसे शब्दों एवं उनके भावों के संदर्भ छांदोग्य उपनिषद्, मनुस्मृति और उसकी मेधातिथि टीका, याज्ञवल्क्य स्मृति तथा याज्ञवल्क्य स्मृति की मिताक्षरा टीका आदि में प्राप्त हैं। वैदिक यज्ञ आदि क्रियाओं के कर्ता, वेदों का अध्ययन करनेवाले, ब्राह्मणों का आदर करनेवाले तथा आस्तिक वंशों को मनुस्मृति में कुल कहा गया है (३-६३-६६)। इन क्रियाओं की हानि, कुविवाह तथा कुछ अन्य दोषों के कारण कुलों का कुलत्व समाप्त होकर अकुलता अर्थात् अकुलत्व में परिणत हो जाता है। वेदादि ग्रंथों में निष्णात तथा उत्तम कुल में उत्पन्न व्यक्तिको ही कुलीन की संज्ञा दी गई है। मनुस्मृति [१] पर टीका करते हुए मेधातिथि ने तो उत्तम कुल में उत्पति के साथ साथ विद्यागुण की संपति कुलीनता का आवश्यक गुण माना है। उत्तम कुल माता-पिता दोनों के कुलीनत्व से ही होता है। [२] कभी-कभी कुलीनत्व के लिए धन संपति का होना भी आवश्यक बताया गया है। परंतु यह सर्वमान्य नहीं था [३] लोक में कुलीनत्व के इस तत्व का कुछ स्थान अवश्य हो गया था। कुलाचारकारिका में कुलत्व और कुलीनत्व के लिए आचार, विनय, विद्या, प्रतिष्ठा, तीर्थदर्शन, निष्ठा, अच्छा वृति, और दान, ये नौ लक्षण माने गए हैं।
बंगाल में कुछ परिवार विशेष जिनके साथ कुलीनत्व जोड़ दिया गया है। कुलीनतंत्र वहाँ के समाज का एक विशिष्ट अंग है। ऐतिहासिक अनुश्रुति यह है कि बंगाल के बल्लाल सेन नामक सेन वंशी राजा ने मध्यदेश के कन्नौज से १२वीं शताब्दी में पाँच मुख्य ब्राह्मण परिवारों को आमंत्रित कर पश्चिमी बंगाल (राढ़) में बसाया। धीरे-धीरे गौड़ भेद के कारण उनके २२ कुल हो गए। इनके आठ वंश गौड़ कुलीन और १४ वंश श्रोत्रिय कहे जाते है। राजा लक्ष्मण सेन ने आठ मुख्य कुलों का समीकरण किया। ऐसा विश्वास है कि आधुनिक मुखोपाध्याय अथवा मुखर्जी, चट्टोपाध्याय (चटर्जी), बंदोपाध्याय (बनर्जी) आदि बंगाली ब्राह्मण उन प्राचीन कुलीन परिवारो के ही वंशज हैं। वारेंद्र (उत्तरी और पूर्वी बंगाल) के मैत्र, लाहिड़ी, भादुड़ी तथा भादड़ा आदि पंक्तिपूरक (पंक्तिपावन) कुलीन ब्राह्मणों के भी उल्लेख मिलते हैं। बंगाल के अनेक वैद्य परिवार भी कुलीन समझे जाते हैं और धन्वंतरि एवं मौद्गल्य गोत्रों से जोड़े जाते हैं। दक्षिणी राढ़ (दक्षिणपश्चिमी बंगाल) के घोष, वसु, मित्र, दत्त और गुह उपाधिधारी कायस्थ भी कुलीन माने जाते हैं और ऐसा विश्वास है कि उनके पूर्वज भी कान्यकुब्ज देश (क्षेत्र) से बंगाल प्रस्थान करने वाले पाँच ब्राह्मण परिवारों के साथ ही गए थे।