कृपानिवास

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
  • कृपानिवास रसिक रामोपासना के एक प्रमुख आचार्य।
  • इनका जन्म १७५० ई. के आसपास दक्षिण भारत में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम सीतानिवास तथा माता का गुणशीला था।
  • वे श्री रंग के उपासक थे।
  • उन्होंने इन्हें बचपन ही में रामानुजीय वैष्णव संत आनंद विलास से दीक्षा दिलाई।
  • पंद्रह वर्ष की अवस्था में इन्हें संसार से विरक्ति हुई और वे घर त्याग कर मिथिला चले आए और रसिक भावना का आश्रय लिया।
  • चारों धाम की पैदल यात्रा करते हुए अग्रदास के आचार्य पीठ रेवासा (जयपुर) गए।
  • वहाँ से अयोध्या आए और कुछ दिनों वहाँ रहे।
  • वहाँ से वे उज्जैन गए और वह कुछ काल तक रहे।
  • तदनंतर वे चित्रकूट आए ओर शेष जीवन वहीं व्यतीत किया।
  • चित्रकूट में ही स्फटिक शिला के पास उनका देहावसान हुआ।
  • युगलप्रिया के अनुसार उन्होंने लगभग एक लाख छंदों की रचना की थी किंतु इनके जो ग्रंथ उपलब्ध हैं उनमें पच्चीस हजार से अधिक छंद नहीं हैं।
  • उनके लिखे समस्त ग्रंथ सांप्रदायिक सिद्धांत निरूपण की दृष्टि से लिखे गए है।
  • कुछ रचनाएँ भावनात्मक भी हैं जो विभिन्न राग-रागिनियों में गेय हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ