केल्ट
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केल्ट
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 122 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्यामचरण दुबे |
केल्ट प्रजाति की दृष्टि से यूरोप के मध्य तथा पश्चिमी भाग के प्राचीन निवासी। आजकल सामान्यत: फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड के केल्टिक भाषाएँ बोलनेवाले उन निवासियों को केल्ट कहा गया है जो शारिरिक आकार में छोटे और त्वचा के रंग में कम उजले हैं। परंतु प्राचीन लेखकों ने जिस प्रजाति को यह संज्ञा दी थी वे ऊँचे, नीली या भूरी आँखोवाले तथा उजले केशोंवाले थे। वे आल्प्स पर्वतमाला के उत्तरी भूभाग में रहनेवाला लोग थे। यूनानी उन्हें केल्तोई कहा करते थे। इस वर्ग में स्कैंडिनेेविया क्षेत्र की नोदिक और अल्पाई इन दोनों प्रजातियों की गणना होती थी। भौगिलिक तथा शरीररचना की दृष्टि से उनकी स्थिति स्कैंडिनेवियाई और भूमध्यसागरीय प्रजातिसमूहों के बीच की कही जा सकती है।
आल्प्स पर्वतमाला और दानूब नदी के बीच की उपत्यका में संभवत: केल्ट जाति के आदि प्रतिनिधि प्राचीन प्रस्तरयुग में आकर बसे थे।- ईसा पूर्व 500 से इनकी शक्ति के विकास का आरंभ हुआ। ये मध्य यूरोप से क्रमश: अन्य क्षेत्रों में फैलने लगे। उनकी शक्ति के विकास का मुख्य कारण संभवत: धातुविद्या में उनकी दक्षता थी। क्षेत्रीय लौह साधनों का विकास उनकी भौतिक संस्कृति की विशेषता थी।
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में उनका विकास और विस्तार सबसे अधिक हुआ। वे सबसे पहले संभवत: फ्रांस के भूमध्यसागरीय तट की दिशा में बढ़े। विद्वानों का अनुमान है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के पूर्व किसी समय वे इटली, दानूब उपत्यका, बाल्कन देशों और दक्षिण रूस में गए होंगे। पश्चिम की ओर वे संभवत: बाद में गए और दो स्वतंत्र समूहों में वे ग्रेट ब्रिटेन के द्वीपों में संभवत: ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पहुँचे।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-रिप्ले : द रेसेज़ ऑव यूरोप; सर्जी : द मेडिटेरेनियन रेस।