कैरो

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
कैरो
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 142
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेङवरीलाल गुप्त

कैरो (1866-1936 ई.)। विश्वविख्यात सामुद्रिक शास्त्री और भविष्यवक्ता। इनका वास्तविक नाम जान ई. वार्नर था और उनका जन्म आयरलैंड में हुआ था किन्तु बचपन में ही अपनी माँ के साथ इंग्लैंड आ गए। वहीं उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास किया किंतु आर्थिक कठिनाइयों के कारण समुचित शिक्षा व्यवस्था न हो सकी। बचपन से ही उन्हे ज्योतिष और हस्तरेखा के प्रति दिलचस्पी थी। अत तत्संबंधी ज्ञान प्राप्ति के निमित्त 17 वर्ष की अवस्था में ही 1883 ई. में वे भारत और आठ वर्ष तक देश मे घूम घूम क र सामुद्रिक विद्या की जानकारी प्राप्त की और अपने इस संचित ज्ञान के बल पर उन्होंने सामुद्रिक विद्या को अपने ढंग से व्यवस्थित रूप दिया ।

1891 ई. में वे वापस इंग्लैंड गए। एक दिन जब वे ईस्ट एंड मुहल्ले से हो कर जा रहे थे तो उन्हें एक दीवार पर किसी के हाथ की छाप दिखाई पड़ी। उसे उन्होंने ध्यान से देखा और कहा कि वह ऐसे हत्यारे के हाथ की छाप है जिसने अपने किसी निकट संबंधी की हत्या की है। पुलिस उन दिनों एक हत्यारे की खोज में थी। उसने उनकी इस बात का सूत्र पकड़ कर खोज आरंभ की तो पता लगा की जिसके हाथ की वह छाप थी उसने अपने पिता की हत्या की थी और पुलिस उसी मामले में हत्यारे को ढँूढ रही थी।

इस बात की समाचार पत्रों में काफी चर्चा हुई। उनकी अनायास ख्याति हो गई और लोग उनके पास आने लगे। छोटे से बड़े लोगों की हस्तरेखा देखकर उनका जीवन वृत्त बताने में वे सफल रहे। 1893 ई. में वह अमरीका गए। वहाँ पहुँचने पर न्यूयार्क वर्ल्ड नामक पत्रिका ने उनके पास कुछ ऐसे लोगों की हाथों की छाप भेजी जिनके संबंध में किसी प्रकार के पूर्व ज्ञान की संभावना न थी ; और कहलाया कि यदि उन हस्तरेखाओं के संबंध में उनकी बताई बातें सत्य ठहरी तो उक्त उनका मुफ्त प्रचार करेगा अन्यथा उन्हें तत्काल अमरीका छोड़ कर वापस जाना होगा। कैरो ने उन हस्तछापों को देखकर उक्त पत्र के संवाददाता दल को जो बातें बताई, वे सर्वांश मे सत्य थीं। फलत उक्त पत्र ने अपने रविवासरीय अंक में कैरो के संबंध में एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया।

इस प्रकार लगभग चालीस वर्षों तक हस्त सामुद्रिक के रूप में कैरो, संसार का भ्रमण करते रहे और दिनों दिन उनकी ख्याति बढ़ती गई। 1897 ई. मे रूस के जार ने भी उन्हे अपने यहाँ बुलाया था। जार के हाथ की छाप को देखकर, यह जाने बिना ही कि वह किसकी छाप है, उन्होंने जो भविष्यवाणी की वह 20 बरसों बाद सर्वांश में सत्य निकली।

कैरी ने अपने सामुद्रिक विद्या संबंधी सिद्धांतो के प्रतिपादन में अनेक ग्रंथ लिखे हैं जिनसे लैंग्वेज आवॅ द हैंड, बुक आवॅ नंबर्स, ह्वेनवर यू बार्न, गाइड टू द हैंड, यू ऐंड योर हैंड आदि कुछ प्रमुख हैं। इनमें वर्णित को लोग प्रमाणित मानते हैं। अपने विषय के प्रकांड पंडित होते हुए भी वैयक्तिक जीवन लोगों के लिये सदा रहस्यमय बना रहा। कुछ लोग उन्हे संदेह की दृष्टि से देखते षड्यंत्री मानते थे उन्होंने हस्त रेखा के आधार पर अनेक संभ्रांत लोगों के जीवन रहस्य प्रकट किए जिससे समाज में काफी हलचल मचती रही। निदान लंदन की पुलिस ने उनपर प्रतिबंध लगाया कि वह किसी का जीवन वृत्त न बखानें। कुछ देशों ने तो उन्हें इसी कारण अपने देश में रहने पर रोक लगाई। फलत परेशान होकर कैरो ने अपना पेशा त्यागकर पैरिस मे शराब बनाने का कारखाना खोल लिया। बाद में उन्होंने ने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया और अमरीकन रजिस्टर नामक पत्र निकाला फिर उन्होंने एक निजी बैंक की स्थापना की। इस व्यवसाय में किसी व्यापारी का रूपया गोलमाल करने के अपराध में उन्हें एक वर्ष की सजा मिली। जेल से छूटने पर उन्होंने एक बार फिर अपने सामुद्रिक ज्ञान के बल पर जीवनयापन की चेष्टा की। 1936 ई. में हालीउड (अमरीका) में उनकी मृत्यु हुई।

टीका टिप्पणी और संदर्भ