कोतवाल

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लेख सूचना
कोतवाल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 158
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवतस्वरूप चतुर्वेदी

कोतवाल नागरिक क्षेत्र के प्रमुख पुलिस अधिकारी। सामान्यत: पुलिस स्टेशन की कोतवाली और थाना अध्यक्ष को (जो सब-इंस्पेक्टर की कोटि का अधिकारी होता है) कोतवाल कहते है। प्रमुख नगरों में जहाँ अनेक थाने होते हैं, कोतवाल का पद तथा कार्यभर उपअधीक्षक (डिप्टी सुपरिंटेंडेंट) सँभालता है।

इस शब्द और पद का उद्भव भारतवर्ष में मुस्लिम काल में हुआ। यद्यपि हिंदू मध्यकाल में कोष्ठपाल का पद, नगराध्यक्ष के अर्थ में, अनजाना न था। कोतवाल पर नागरिक क्षेत्रों में पुलिस कार्य के संपादन का दायित्व होता था। उसका समकक्ष अधिकारी फौजदार कहलाता था, जिसके अधिकार में ग्रामीण क्षेत्र की देखभाल एवं व्यवस्था-स्थापना का कार्य था।

मुगलकाल में पुलिस का कार्य केवल शांति-व्यवस्था-स्थापन तक ही सीमित न था, धर्म संबंधी, नैतिक एवं जन साधारण के आचरण की देखभल भी पुलिस के कर्तव्यों में सन्निहित था। इन समस्त कर्तव्यों का पालन कराने के निमित्त नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस के अधिष्ठाता क्रमश: कोतवाल तथा फौजदार होते थे।

कोतवाल के कर्तव्यों और अधिकारों का विस्तृत विवरण आईने-अकबरी में एवं अकबर के सन्‌ 1595 ई. में प्रचारित फरमान में मिलता है। कोतवाल का पद वास्तव में फारस के मुहताशिब एवं हिंदू काल के स्थानिक की सम्मिलित शक्तियों का प्रतीक था। शेरशाह ने अपने काल में पुलिस का संगठन स्थानीय उत्तरदायित्व के सिद्धांत के आधार पर किया था। मुगलकालीन कोतवाल एवं फौजदार को भी हम स्थानीय उत्तरदायित्व के सिद्धांतों का प्रतीक पाते हैं। अकबर और उसके उत्तराधिकारियों ने इस नियम को ही मान्यता दी कि कोतवाल एवं फौजदार को संपत्ति संबंधी उन समस्त अपराधों का भागी ठहराया जाए जो उनके अधिकारक्षेत्र में घटित हों। इतने विस्तृत कर्तव्यों और दायित्वों का भार वहन करने के कारण स्वाभाविक रूप से इन स्थानीय पुलिस अधिकारियों को विस्तृत शक्ति भी प्रदान की गई थी। कोतवाल को यह अधिकार था कि कोई दुर्घटना अथवा अपराध घटित होने की दशा में वह लोगों को पुलिस की सहायता देने के निमित्त आदेश दे। उसे अपने कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिये अपने सहकारियों और अधीनस्थ कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार था।

मुगलकालीन कोतवाल के दायित्वों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया जा सकता है: (1) नगर की सुरक्षा तथा चौकसी; (2) बाजार का नियंत्रण; (3) स्वामित्वहीन संपत्ति की व्यवस्था एवं देखभाल; (4) जनसाधारण के आचरण का संयमन; (5) अपराधनिरोध एवं विवेचन; (6) श्मशान घाट, कब्रिस्तानों आदि की देखभाल।

मुगलकालीन एवं आधुनिक कोतवाल में इस बात में समरूपता है कि उनपर अपराधनिरोध, विवेचन एवं शांतिव्यवस्था स्थापित स्थापित रखने का भार है। अन्यथा आधुनिक और मुगलकालीन कोतवाल में शक्ति एवं कर्तव्यों की व्यापकता और स्वरूप में अत्यधिक विभिन्नता है। आधुनिक कोतवाल को जनसाधरण के नैतिक आचरण की देखभाल से सामान्यत: तबतक कोई प्रयोजन नहीं होता, जबतक वह आचरण विधिविरूद्ध अथवा दंडनीय न हो।


टीका टिप्पणी और संदर्भ