कोबाल्ट
कोबाल्ट
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 161 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | निरंकार सिहं |
कोबाल्ट एक रासायनिक तत्व है।[१]प्राचीन काल के रंगीन कांच के विश्लेषण से पता लगता है कि कोबाल्ट के खनिज का उपयोग तब ज्ञात था। ऐग्रिकोला ने 1530 ई. में कुछ खनिजों और अयस्कों के लिए कोबाल्ट शब्द का प्रयोग किया था। 1742 ई. में ब्रांट (Brandt) ने पहले पहल अशुद्ध रूप में इस धातु को प्राप्त किया था। उन्होंने इसके चुंबकीय गुण और ऊँचे द्रवणांक का भी पता लगाया था। कुछ खनिजों के पिघलाने से नीले रंग के बनने का कारण यही तत्व था। इस धातु का प्रारंभिक अध्ययन बैर्गमैन (Bergman) ने किया।
कोबाल्ट अन्य धातुओं के खनिजों, विशेषत: लोहे और सीसे के खनिजों के साथ मिला हुआ पाया जाता है। इसके सामान्य खनिज स्मॉल्टाइट को आ 2 (Smaltite, CoAs2), लिनीआइट (Linnaeite) कोबाल्ट सल्फाइड, ईथ्राािइट (Erythrite, 3 CoO.As2O5 8H2O)और कोबाल्टाइट (CoS, CoAs2), ऐसबोलाइट (Asbolite, CoO,2MnO2,4H2O) हैं। इनके खनिज व्यापक रूप से, पर अल्प मात्रा में अनेक देशों कांगो, चिली, अमरीका इत्यादि-में पाए जाते हैं। अधिकांश उल्काश्म (meteorites) में भी लोहे और निकल के साथ यह पाया जाता है। सूर्य और अनेक तारों में इसकी उपस्थिति मिलती है। अनेक पौधों और जंतुओं में भी इसका लेश पाया गया है।
खनिजों से धातु प्राप्त करने की विधि खनिजों की प्रकृति और उनमें उपस्थित धातुओं पर निर्भर करती है। धातुकर्म वस्तुत: कुछ पेचीदा होता है। इस खनिज को दलकर भट्ठियों में भूनते हैं। इससे वाष्पशील अंश बहुत कुछ निकल जाता है। फिर नमक के साथ उत्तप्त करते हैं, जिससे चाँदी अविलेय सिल्वर क्लोराइड में परिणत हो जाती हैं। जलविलेय निष्कर्ष में कोबाल्ट के अतिरिक्त निकल और ताँबा रहते हैं। लौह धातु के उपचार से ताँबे को अवक्षिप्त करके अलग कर लेते हैं। अवशेष को अब हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घुलाते हैं। विलयन को चूना पत्थर से उदासीन बनाकर, लोहे को हाइड्राम्क्साइड के रूप में अवक्षिप्त कर लेते हैं। निस्यंद को अब बिरंजक चूने के उपचार से कोबाल्ट का काले कोबाल्ट हाइड्रॉक्साइड (Cobalt hydroxide) के रूप में अवक्षेप निकल जाता है और निकल विलयन में रह जाता है।
कोबाल्ट धातु प्राप्त करने के लिये कोबाल्ट के आक्साइड का हाइड्रोजन, या कार्बन, या कार्बन मॉनोक्साइड, या ऐल्यूमिनियम से अवकरण करते हैं, अथवा इसके अल्प अम्लीय ऐमोनिया युक्त विलयन में बिजली के प्रवाह से कोबाल्ट का अवक्षेप प्राप्त करते हैं।
कोबाल्ट हल्की नीली आभावाली चाँदी सी सफेद धातु है। इस पर पालिश अच्छी चढ़ती है। कोबाल्ट से पालिश की हुई वस्तुएँ अधिक टिकाऊ होती हैं। इसके भौतिक गुण इस प्रकार हैं :
विशिष्ट घनत्व
8.8
द्रवणांक
1,480 सें.
क्वथनांक
2,375 सें. (30 मिलीमीटर पर)
विशिष्ट उष्मा
0.0828
कठोरता
5.5
तनाव सामर्थ्य
60,000 पाउंड प्रति वर्ग इंच
यह घातवर्ध्य और भंगुर होता है, पर भंगुरता अल्प कार्बन डालकर कमी की जा सकती है। 1,100 सें. ताप तक यह प्रबल चुंबकीय होता है। इसके दो रूप, साधारण ताप पर ऐल्फा कोबाल्ट और ऊँचे ताप पर बीटा कोबाल्ट, होते हैं। इसके पाँच रेडियधर्मी समस्थानिक पाए गए हैं।
कोबाल्ट की मिश्र धातुएँ महत्व की हैं। लौह और अलौह धातुओं से अनेक मिश्र धातुएँ, कोक्रोम (Cochrome), स्टेलाइट (Stellite), वीडिया (Widia) इत्यादि बनती हैं। इनके उपयोग प्रबल चुंबक बनाने, काटने के औजार, छेनी, खराद, ठप्पे आदि और बिजली के यंत्र इत्यादि बनाने में होते हैं।
सूक्ष्म विभाजित कोबाल्ट धातु आयतन में 60-150 गुना हाइड्रोजन का अवशोषण करती है। इसको निर्वात में 200 सें. तक गरम करने से हाइड्रोजन जल्द निकल जाता है। साधारण ताप पर कोबाल्ट वायु में स्थायी होता है; पर रक्त उष्णता पर आक्साइड बनता है। रक्ततप्त कोबाल्ट तथा जलवाष्प से आक्साइड बनता है। कोबाल्ट तनु अम्लों से लवण बनाता है और हैलोजन से हैलाइड बनते हैं। क्षार की इस पर कोई क्रिया नहीं होती। कार्बन मॉनोक्साइड के साथ वह कोबाल्ट कारबोनील बनाता है।[२]
उपयोग----कोबाल्ट (आ. घ., 8.8) एक रजत श्वेत धातु है जो लोहे तथा निकल से कड़ी होती है। लोहे के बाद चुंबकीय धातु के रूप में इसका नाम आता है। 1,150 सें. तक गर्म करने पर भी इसका चुंबकत्व स्थायी रहता है। इसका उपयोग स्थायी चुंबकीय इस्पातों के औद्योगिक उत्पादन में किया जाता है। स्टेनलेस इस्पात, उच्चवेग इस्पात और तापप्रतिरोधी तथा संक्षरण प्रतिरोधी मिश्रधातुओं का यह आवश्यक अवयव है। इसका उपयोग विद्युतलेपन में हाइड्रोजन तथा कार्बन मॉनोआक्साइड से कार्बनिक यौगिकों का संश्लेषण करते समय उत्प्रेरक के रूप में तथा काटने वाले अति कठोर औजारों के सिरों पर लगे हुए टंगस्टन कार्बाइड के बंधक के रूप में होता है।
अब काटने के औजारों तथा तेल के कुएँ खोदने के औजारों के कर्तक भागों के बनाने में उच्चवेग इस्पात के स्थान क्रोमियम तथा टंगस्टन के साथ कोबाल्ट की मिश्रधातुएँ इस्तेमाल की जाती है जिन्हें स्टेलाइट कहते हैं। स्टेलाइट की कठोरता काटनेवाले सिरे को लाल तप्त कर देने पर भी कम नहीं होती। इसका उपयोग छुरी काँटे के औद्योगिक निर्माण में होता है। विद्युत् भट्ठियों में कोबाल्ट क्रोमियम ऐल्युमिनियम की मिश्रधातुएँ प्रयुक्त होती हैं। नकली दाँतों की मिश्रधातुओं में तथा जहाजी नोदकों की नाभि में प्रयुक्त बेरीलियम ताम्र मिश्रधातुओं में कोबाल्ट अवश्य रहता है।
रंजकों के औद्योगिक निर्माण में कोबाल्ट के अनेक यौगिक काम आते हैं, जैसे कोबाल्ट सल्फेट ऐल्युमिनेट, कोबाल्ट कार्बोनेट तथा कोबाल्ट नाइट्रेट। कोबाल्ट से रंग अत्यंत स्थायी होते हैं किंतु महँगे होते हैं और ठीक से चढ़ते नहीं। तथापि इनैमल करने और चीनी मिट्टी के उद्योग में नीले रंजक के रूप में कोबाल्ट यौगिकों के सिवा और कोई पदार्थ नहीं प्रयुक्त होता। आक्सिकरण अभिक्रियाओं में कोबाल्ट के यौगिक उत्प्रेरक की तरह प्रयुक्त किए जाते हैं।
कोबाल्ट के कार्बनिक यौगिक आयल पेंटों को कम समय में सुखाने के लिये प्रयुक्त किए जाते हैं। कोबाल्ट के आर्द्रताग्राही विलेय लवणों का उपयोग गुप्त स्याही बनाने में होता है। प्रयोगशाला में खनिजों के फूँकनली परीक्षण में, विशेषत: ऐल्युमिनियम, यशद तथा मैगनीशियम की पहचान के लिये कोबाल्ट नाइट्रेट का प्रयोग होता है।