कोरिया
कोरिया
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 168 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | शीतलप्रसाद सिंह |
कोरिया पूर्वी एशिया में मुख्य स्थल से संलग्न एक छोटा सा प्रायद्वीप जो पूर्व में जापान सागर तथा दक्षिणपश्चिम में पीतासागर से घिरा है (स्थिति : 340 43’ उत्तरी अक्षांश से 1240 131’ पूर्वी देशांत)। उसके उत्तरपश्चिम में मंचूरिया तथा उत्तर में सोवियत संघ की सीमाएँ हैं। यह प्रायद्वीप दो खंडों में बँटा हुआ है। उत्तरी कोरिया का क्षेत्रफल 1,21,000 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या लगभग 80 लाख है। इसकी राजधनी पियांगयांग है। दक्षिणी कोरिया का क्षेत्रफल 98,000 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 2.5 करोड़ (1960) है।
यहाँ पर ई. पू. 1918 से 139 ई. तक कोर-यो (Kor-Yo) वंश का राज्य था जिससे इस देश का नाम कोरिया पड़ा। चीन तथा जापान से इस देश का अधिक संपर्क रहा है। जापान निवासी इसे चोसेन (Chosen) कहते रहे हैं जिसका शाब्दिक अर्थ है सुबह की ताज़गी का देश (Land of morning freshness)। यह देश अगणित बार बाह्य आक्रमणों से त्रस्त हुआ। फलत: इसने अनेक शताब्दियों तक राष्ट्रीय एकांतिकता की भावना अपनाना श्रेयस्कर माना। इस कारण इसे संसार में यती देश (Hermit Kingdom) कहा जाता रहा है।
अनेक शताब्दियों तक यह चीन का एक राज्य समझा जाता था। 1776 ई. में इसने जापान के साथ संधि-संपर्क स्थापित किया। सन् 1904-1905 ई. के रूसी जापानी युद्ध के पश्चात् यह जापान का संरक्षित क्षेत्र बना। 22 अगस्त् 1910 ई. को यह जापान का अंग बना लिया गया। द्वितीय महायुद्ध के समय जब जापान ने आत्मसमर्पण किया तब 1945 ई. में याल्टा संधि के अनुसार 38 उत्तरी अक्षांश रेखा द्वारा इस देश को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। उत्तरी भाग पर रूस का और दक्षिणी भाग पर संयुक्त राज्य अमरीका का अधिकार हुआ। पश्चात् अगस्त 1948 ई. में दक्षिणी भाग में कोरिया गणतंत्र का तथा सितंबर, 1948 ई. में उत्तरी कोरिया में कोरियाई जनतंत्र (Korean Peoples Democratic Republic) की स्थापना हुई। प्रथम की राजधानी सियोल और द्वितीय की पियांगयांग बनाई गई। सन् 1953 ई. की पारस्परिक संधि के अनुसार 38 उत्तर अक्षांश को विभाजन रेखा मानकर इन्हें अब उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया कहा जाने लगा है।
भौगोलिक संरचना एवं प्राकृतिक प्रदेश---यह मुख्यत: पर्वतीय देश है। रीढ़ की हड्डी के समान यहाँ की पर्वतश्रेणियाँ पश्चिमी तट की अपेक्षा पूर्वी तट के अधिक निकट हैं। पीत सागर में गिरनेवाली नदियाँ जापान की नदियों से बड़ी हैं और कुछ बहुत दूर तक, विशेषकर ज्वारभाटा के समय में नौगम्य है। उत्तरपूर्व का पर्वतीय प्रदेश समुद्रतल से 2,670 मीटर ऊँचा है। उसमें कहीं कहीं ज्वालामुखी शिखर हैं। पश्चिमी तटवर्ती भाग मैदानी हैं। इसमें बहनेवाली मुख्य नदियाँ ताईयोंग, हार्न, क्यूम और नाकतोंग हैं।
कोरिया को पाँच प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है। (1) मध्य ओर उत्तर के पर्वतों वाला प्रदेश---यह एक अगम्य, विरली बस्तियों का वनप्रधान पर्वतीय प्रदेश है। इन पर्वतों के शिखर 1,400 मीटर से भी ऊँचे हैं। कैमा का पठार उसी का एक अंग हे जो दक्षिण में तैहोकू श्रेणी में विलुप्त हो जाता है। (2) पूर्वीय तटीय पेटी---यह एक सँकरा, एकांत प्रदेश है जिसमें तट के पास मछुओं के ग्राम हैं। यहाँ के मछुए छोटी छोटी नावों तथा परंपरागत पद्धति से मछलियाँ पकड़ते हैं। तटीय पेटी के पीछे कृष्य भूमि की एक सँकरी पेटी है जिसमें चावल, ज्वार, बाजरा इत्यादि अन्न उगाए जाते हैं। (3) दक्षिणी पूर्वी रेशमी का क्षेत्र यह नाकटोंग बेसिन और उसके चारों ओर की पहाड़ियों से बना है तथा ऐसा प्रदेश है जहाँ रेशम उद्योग खूब बढ़ा चढ़ा है। (4) दक्षिणपश्चिमी के खेतिहर बेसिन---यह देश का सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग है। हान का मध्यवर्ती बेसिन जो इंचन नदी के मुहाने पर से तीन दिशाओं में फैल जाता है, दीर्घकाल से प्रायद्वीप का आर्थिक तथा राजनैतिक स्थल रहा है। पश्चिम के सभी बेसिनों में शहतूत के वृक्ष लगाए जाते हैं और रेशम उत्पादन कार्य होता है। (5) पश्चिमोत्तर खेतिहर बेसिन तथा खनिज प्रदेश सिओल के उत्तर में जाड़े में इतनी अधिक ठंड होती है कि शरद् ऋ तु में बीज बोए नहीं जा सकते फलत: वर्ष में यहाँ केवल एक फसल होती है। गेहूँ, ज्वार, बाजरा तथा सोयाबीन का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।
जलवायु----कोरिया की जलवायु उत्तरी चीन से मिलती जुलती है। लगभग संपूर्ण देश में एक मास का माध्यम तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है। यहाँ भी जून में अधिकतम वर्षा होती है। दक्षिण कोरिया में अप्रैल में कुछ ही दिनों का वर्षाकाल होता है जिससे यहाँ चावल की अत्यधिक फसल होती है। वर्षा का औसत 35 तथा ग्रीष्म का ताप 75 फै. रहता है। उत्तरी पूर्वी भाग में जाड़ों में खूब तुषारपात होता है किंतु दक्षिण जिनसेन और सियोल के दक्षिण वाले भाग में जाड़ों में तापमान कदाचित् ही कभी शून्य से नीचे जाता है। अत: यहाँ नौ मास उपज काल रहता है। उत्तरपश्चिमी महाद्वीपीय भाग की जलवायु मंचूरिया के निकटवर्ती भागों से मिलती जुलती है।
प्राकृतिक वनस्पति----देश का लगभग एक तिहाई भाग वनाच्छादित है। नदियों के मैदानों में घास होती है। दक्षिणी भाग की वनस्पतियाँ दक्षिणी जापान के पाइन्स, ओक, बालनटस इत्यादि से मिलती जुलती हैं और उत्तर में उत्तरी जापान के कोणधारी वृक्षों के वन हैं। अधिक वनों के काटे जाने से तथा उनकी उपेक्षा के क ारण मध्य और दक्षिणी कोरिया के अधिकांश पर्वत अब नग्न से हो गए हैं। कहीं कहीं वनों को लगाया भी गया है। एक प्रकार से समूचा देश हरी घाटियों और घर्षित नग्न पहाड़ियों का भूलभुलैया सा है।
खनिज-----उत्तरी कोरिया खनिज पदार्थों में धनी है तथा यहाँ एं्थ्राासाइट, कोयला, कच्चा लोहा और सोना निकाला जाता है। यहाँ टंगस्टन भी प्राप्त होता है। उंसन और सुइअन यहाँ की मुख्य सोने की खानें है। कच्चा लोहा वांधाई और श्रेष्ठतम एं्थ्राासाइट पियोप्यांग से निकलता है। यहाँ खनिज लौह का सुरक्षित भंडार 10 करोड़ टन है। कोयले का उत्पादन 1.5 करोड़ टन (1960) है जिसमें 60 लाख टन दक्षिण कोरिया से प्राप्त किया जाता है। इन खनिजों के अतिरिक्त कोरिया में जस्ता, सीसा और अभ्रक पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।
कृषि एवं औद्योगिक विकास----कोरिया कृषिप्रधान देश है। देश के संपूर्ण कृषि क्षेत्र का 21 प्रतिशत भाग कृषियोग्य है। यहाँ की मुख्य उपज चावल है। कुल कृषिभूमि के 40% भाग पर चावल की खेती होती है और अधिकांश निवासी चावल खानेवाले हैं। शेष भाग में जौ, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, सोयाबीन तथा लाल फली की खेती होती है। व्यापारिक फसलों में कपास, तंबाकू, सन तथा जिनसैंग पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होती है। यहाँ मूली से किंची तैयार की जाती है।
यहाँ मत्स्योत्पादन क्षेत्र विस्तृत है। जापानियों के प्रोत्साहन से यहाँ मछलीं पकड़ने का कार्य प्रारंभ हुआ और संपूर्ण देश की 60 प्रतिशत मछलियाँ उत्तरी कोरिया में पकड़ी जाती हैं। गाय, भैंस एवं सूअर यहाँ की जीव संपदा हैं। गाय, भैंस, विशेषकर वे जो उत्तरी कोरिया में हमक्योंग में पाले जाते हैं, अपने आकार तथा नस्ल के लिये प्रसिद्ध हैं और ये पशु अधिक मात्रा में जापान निर्यात किए जाते हैं।
उत्तरी कोरिया में उद्योगों का पर्याप्त विकास हुआ है। यहाँ के मुख्य उद्योग सूती वस्त्र व्यवसाय, रेशमी वस्त्र, सीमेंट, कच्चा लोहा, रसायनक, जलविद्युत आदि हैं। यह क्षेत्र औद्योगीकरण के साथ साथ खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भी आत्मनिर्भर है। दक्षिणी कोरिया में वस्त्रोद्योग, लोहा, सीमेंट आदि का विकास हुआ है। औद्योगिक नगरों में पुसान सिल्क के लिये, केंजिहो और इंचोन लौह इस्पात के लिये प्रसिद्ध हैं। देश की 95 प्रतिशत जलविद्युत् शक्ति का उत्पादन उत्तरी कोरिया में होता है।
उत्तरी कोरिया का लगभग 60 प्रतिशत विदेशी व्यापार सोवियत रूस के साथ 30 प्रतिशत चीन के साथ और शेष व्यापार भारतवर्ष तथा अन्य देशों के साथ होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ