क्रिश्चियन

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लेख सूचना
क्रिश्चियन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 206
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेवरीलाल गुप्त

किश्रियन (1) ईसा मसीह के अनुयायी, ईसाई मतावलंबी। (देखिए ईसाई धर्म)।

(2) डेनमार्क के नरेशों का नाम। वहाँ इस नाम से अबतक दस नरेश हुए हैं।

क्रिश्चियन (प्रथम)- (1426-1481)। जन्म 4 मई, 1426। यह ओल्डेनबर्ग के काउट थियाड्रिक का लड़का और आल्डेनबर्ग राजघराने का संस्थापक था। 1448 ई. में वह डेनमार्क और 1450 ई. मे नार्वे का स्वामी हुआ और उसने दोनों को मिलाकर उनका एक संयुक्त राज्य स्थापित किया। उसने अपनी पत्नी के सहयोग से 1479 ई. में कोपनहगेन विश्वविद्यालय की स्थापना की । 21 मई, 1481 का कोपनहेगेन में उसकी मृत्यु हुईं।

क्रिश्चियन (द्वितीय)-(1481-1559 ई.)। 1 जुलाई, 1481 ई. तक वह नार्वे का स्वीडन तीनों देशों का शासक था। 1502 से 1513 ई. तक वह नार्वे का वाइसराय था। इस रूप में अपनी प्रशासकीय बुद्धिमत्ता का अद्भुत परिचय दिया। डेनमार्क का राजा होने के बाद 1513 ई. में उसने स्पन के चार्ल्स पंचम की पुत्री इज़ाबेला से विवाह किया। स्वीडन का शासन हस्तगत करने के प्रयत्न में वह गुस्ताबस त्राले, स्टेन स्टूरे से दो बार पराजित हुआ लेकिन तीसरी बार 1520 ई. में कोगरंड की लड़ाई में सफल हुआ ओर स्टेन स्टूरे घायल हुआ तथा स्टाकहोम जाते समय रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई। क्रिश्चियन ने आम माफी की घोषणा की थी परंतु स्टाकहाम का खूनी लड़ाई के समय उसने अपना वचन भंग कि या। एक वर्ष तक बाहर रहने के बाद वह डेनमार्क लौटा। वहाँ क्रांतिकारी सुधार लागू किए, लेकिन डेन लोगों ने अपनी स्वतंत्रता का अपहरण होते देख विद्रोह कर दिया। 1523 ई. में गुस्तावस प्रथम के नेतृत्व में स्वीडन ने डेनमार्क की सत्ता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इस समय उसे डेनमार्क से निर्वासित होना पड़ा और ड्यूक वहाँ का राजा बना। 1531 ई. में क्रि श्चियन ने नार्वे आने का प्रयत्न किया लेकिन सफल नहीं हो सका और फ्रेडरिक ने उसे गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। उसने अपने अंतिम दिन कलंडबर्ता कैसिल में व्यतीत किए और वहीं जनवरी, 1559 ई. में उसकी मृत्यु हुई।

क्रिश्चियन (तृतीय)- (1503-1559 ई.)। डेनमार्क और नार्वे का राजा। 12 अगस्त, 1503 ई. को जन्म । वह जर्मनी के लूथरवादी शिक्षक से शिक्षित और दीक्षित हुआ। वह रोमन कैथोलिकों के प्रति बहुत असहिष्णु था। 1529 ई. में वह नार्वे का वाइसराय बना। 1533 ई. में जब उसके पिता फ्रेडेरिक प्रथम की मृत्यु हुई तो उत्तराधिकार के लिये बहुत अराजकता फैली। तब वह सबका दमनकर 1535 ई. में राजा बना। दूसरे वर्ष उसने डेनमार्क के शासन में सुधार किए और राज्याधिकार को जो, चुनाव की पद्धति पर आधारित था, हटाकर वंशपरंपरागत कर दिया। 1542 ई. में उसने पवित्र रोमन सम्राट् चार्ल्स पंचम से युद्ध की घोषणा की। 1544 ई. में जहाजों के लिये स्कैंडिनेविया जलमार्ग का बंदकर डचों को संधि करने को बाध्य किया । लूथरवादी सिद्धांतों के प्रति विशेष आग्रह के कारण उसके व्यवहार में कभी कभी कठोरता आ जाती थी, फिर भी उसने प्रथम बार डेन जनता को एक सूत्र में बाँधा। 1 जनवरी, 1559 को डेनमार्क में उसकी मृत्यु हुई।

क्रिश्चियन (चतुर्थ)- (1577-1648 ई.)। फ्रे़डरिक्सबर्ग में 12 अप्रैल, 1577 ई0 को जन्म। वह भी डेनमार्क और नार्वे का राजा था। उसके पिता क्रिश्चियन फ्रेडरिक ने 1582 ई. में अपने सामंतों के साथ समझौता किया था कि उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र को राजगद्दी मिलेगी। फलत: वह 1588 ई. में उनावस्था में ही वह राजगद्दी पर बैठा और 1596 तक रिजेंसी कौंसिल शासन चलाती रही। उसका शासन काल संघर्षों से भरा लेकिन बहुत महत्वपूर्ण था। उसने स्थलसेना एंव नौसेना में सुधार किए और कोपेनहेगेन के विस्तृत और सुंदर बनाया। ‘डेनिश ईस्ट ऐंड वेस्ट इंडीज कंपनी’ का आरंभकर उसने अपने व्यापारिक सम्बंधों को दृढ़ आधार पर खड़ा किया।

अंतराष्ट्रीय क्षेत्र में उसकी महत्वाकांक्षा अपने साम्राज्य को उत्तरी जर्मनी तक फैलाने की थी। स्वीडन के साथ 1611-12 ई. का कालमार युद्ध उसकी इसी महत्वाकांक्षा का परिणाम था। उसी के हस्तक्षेप के कारण तीसवर्षीय युद्ध भी हुआ जिसमें रिली और वालेंस्टाइन के हाथों वह पराजित हुआ। अपनी सुरक्षा की दृष्टि से लेनार्ट टारस्टेनसन ने 1644 में डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि इस युद्ध में क्रिश्चियन की जीत हुई, फिर भी 8 फरवरी, 1645 की ब्रोमसेब्रो संधि से स्वीडन के मुकाबले वह घाटे में ही रहा। उसके जीवन के अंतिम तीन वर्ष सांमतों के साथ गृहकलह में व्यतीत हुए। 24 फरवरी, 1648 के फ्रेंडरिक्सबर्ग कैसिल मे उसकी मृत्यु हुई। (स. वि.)

क्रिश्चियन (पंचम)- (1646-1699 ई.)। डेनमार्क-नार्वे का नरेश। फ्रेडरिक (तृतीय) का पुत्र। इसका जन्म फ्लेसबर्ग में 15 अप्रैल, 1646 ई. को हुआ था और वह 9 फरवरी, 1670 को सिंहासनारूढ़ हुआ। निम्नवर्गीय प्रजा में वह काफी लोकप्रिय बना किंतु पुराने सामंत परिवार के लोग उससे घृणा करते रहे। उसने सामंतों की दो नई पंक्ति बनाने का प्रयास किया जिसमें बुहलश: राज्य के अधिकारी और उच्च मध्य वर्ग के लोग थे। अपने सलाहकार ग्रिफेनफेल्ड के निर्देशन में उसने एक छत्र शासन की कल्पना को मूर्त रूप दिया और नागरिक और सैनिक व्यवस्था को अत्यधिक केंद्रीभूत बनाया। ग्रिफेनफेल्ड ने वैदेशिक मैत्री की नीति और शांति बनाए रखने की चेष्टा की और ऐसा लगने लगा कि डेनमार्क शीघ्र ही अपने पूर्व वैभव को प्राप्त कर लेगा किंतु तभी ग्रफ्रेिनफ्रेल्ड से विद्वष रखनेवालों के प्रभाव में आकर क्रिश्चियन ने उसे आजीवन कारावास दे दिया। फिर तो डेनमार्क की आर्थिक स्थिति गिरती गई। इसका कारण कुछ तो दरबार का अंधाधुध खर्च था और कुछ स्वीडेन के साथ 1675-1679 ई. तक हुआ अलाभकर युद्ध। इसके शासनकाल में नार्वे के लिये एक नया कानून बना। 25 अगस्त, 1699 ई. को शिकार खेलते समय एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई।

क्रिश्चियन (सप्तम)-(1749-1808)। डेनमार्क-नार्वे का नरेश। डेनमार्क नरेश फ्रेडरिक (पंचम) का पुत्र। उसकी पहली पत्नी ग्रेट ब्रिटेन के नरेश जार्ज (द्वितीय) की पुत्री थी। पिता की मृत्यु के उपरांत 14 जनवरी, 1777 ई. को राज्यारूढ़ हुआ। किंतु वह अत्यंत विलासी सिद्ध हुआ और शासन के अतिंम 26 वर्ष तक तो वह नाममात्र का शासक रहा। उसकी ओर से उसका सौतेला भाई राजकुमार फ्रेडरिक राजकाज देखता रहा। 13 मार्च, 1808 ई. को उसकी मृत्यु हुई।

क्रिश्चियन (अष्टम)- (1786-1848 ई.)। यह क्रिश्चियन (सप्तम) का सौतेला भाई और फ्रेडरिक (पंचम) का पुत्र था। उसका जन्म क्रिश्चियनबुर्ग केंसल में 18 सितंबर, 1786 ई. को हुआ। वह 17 मई 1814 ई. को नार्वे का नरेश निर्वाचित हुआ। तभी उसका स्वीडन के साथ नार्वे और स्वीडन के एकीकरण के प्रश्न पर विवाद हो गया और युद्ध छिड़ गया जिसमें क्रिश्चियन (अष्टम) को स्वीडन के युवराज के हाथों पराजित होना पड़ा। फलत: लोगों को उसके प्रजातांत्रिक सिद्धांतों के प्रति संदेह होने लगा और वह 1831 ई. तक राजकाज के प्रति एक प्रकार से उदासीन बन गया। 1831 ई. में जब वयोवृद्ध नरेश फ्रेडरिक ने उसे काउंसिल ऑव्‌ स्टेट में स्थान दिया तब वह फिर कुछ राजकाज देखने लगा। 13 दिसंबर 1839 ई. को वह डेनमार्क के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उदारवादी दल को आशा थी कि वह उन्हें कोई अच्छा संविधान देगा किंतु उन्हें निराशा हुई। भाषा के प्रश्न पर उसका श्लेसविगऔर होल्स्टीन के जर्मन निवासियों से संघर्ष हो गया और उसने 8 जुलाई 1846 ई. को इस बात की घोषणा कि का उत्तराधिकार के मामले में उन प्रांतों में डेनिश राजवंश के नियम लागू होंगे। फलस्वरूप उसके उत्तराधिकारी को 1848 ई. में युद्ध का सामना करना पड़ा। उसकी मृत्यु प्लाउन में 20 जनवरी, 1848 ई. को हुई।

क्रिश्चियन (नवम)----(1818-1904 ई.)। डेनमार्क नेरश। यह श्लेसविग-होल्सटीन-सोंडरबुर्ग-ग्लाउक्सबुर्ग के ड ्यूक विलियम का पुत्र और क्रिश्चियन तृतीय की पत्नी की सीधी वंशपरंपरा में था। उसका जन्म 8 अप्रैल 1818 ई. को गोट्टार्प में हुआ था। वह सेना में भर्ती हुआ। 1848 ई. के श्लेसविक के विद्रोह के समय वह डेनिश सेना के साथ रहा। 1842 ई. में उसने तत्कालीन फ्रेडरिक (सप्तक) की चचेरी बहन से विवाह किया। फ्रेडरिक निस्संतान था इस कारण मई 1852 ई. में लंदन में बड़ी शक्तियों के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई और उसमें राजकुमार क्रिश्चियन को युवराज घोषित किया गया । इस बात को 1853 ई. में डेनमार्क से भी मान्यता प्राप्त हो गई। फ्रेडरिक की मृत्यु के पश्चात्‌ वह नवंबर 1862 ई. में गद्दी पर बैठा। उसने तत्काल एक संविधान लागू किया जिसमें श्लेसविग को डेनमार्क में अंतर्भूत करने की बात थी। फलत: उसका जर्मन संघ से संघर्ष ठन गया जो शीघ्र ही जर्मन डैनिश युद्ध में परिणत हो गया। 13 अक्तूबर 1864 ई. को इन प्रदेशों के डेनमार्क से अलग किए जाने पर ही युद्ध समाप्त हुआ। राज्य के खंडित हो जाने के बाद भी क्रिश्चियन की कठिनाई में कमी नहीं हुई। उसका सारा शासनकाल अपने देश के दक्षिण और वामपक्षी दलों के संघर्ष के बीच बीता। बहुत दिनों तक तो वह सुधारवादी दल को सत्तारूढ़ होने से रोकता रहा किंतु अंत में 1901 ई. उसेे वामपक्षियों को मंत्रिमंडल बनाने की अनुमति देनी ही पड़ी। अपने अंतिम दिनों में यूरोप के नरेशों के बीच जिनसे उसका पारिवारिक संबंध था, उसकी स्थिति पितवत्‌ थी। उसके ज्येष्ठ पुत्र फ्रेडरिक से स्वीडन नरेश चार्ल्स (नवम्‌) की पुत्री का विवाह हुआ था। उसका द्वितीय पुत्र 1863 ई. से हेलेंस का नरेश था। कनिष्ठ पुत्र वाल्डमार का विवाह मारी द’ आर्लिायंस से हुआ था। उसके तीन पुत्रियों में से एक का विवाह ग्रेट ब्रिटन नरेश एडवर्ड सप्तम से, दूसरी का रूस के जार अलेक्जांडर (तृतीय) से और तीसरी का कंबरलैंड के ड्यूक से हुआ था। उसका एक पौत्र 1905 ई. में हाकोन (सप्तम) के नाम से नार्वे का नरेश बना, दूसरा कास्टेंटाइन यूनान का युवराज (पश्चात्‌ नरेश) हुआ। क्रिश्चियन की मृत्यु 29 जनवरी 1706 का कोपेनहैगेंन में हुई।

क्रिश्चियन (दशम)-----(1870-1947 ई.)। डेनमार्क और आइसलैंड नरेश। युवराज फ्रेडरिक (बाद में फ्रेडरिक अष्टम) के पुत्र जिनका जन्म 26 सिंतबर,1870 ई. को कोपेनहैंगेन में हुआ था। 1889 ई. में मैट्रिक्युलेशन करने के बाद सेना में भर्ती हुए और पदोन्नति करते हुए मेंजर जनरल बने। 1906 ई. में वे युवराज घोषित किए गए और 1912 ई. मे सिंहासनारूढ़ हुए।

प्रथम महायुद्ध के समय स्कैंडिनेवियन देशों के बीच मैत्रीपूर्ण विचार विमर्श का आयोजन उन्होंने किया। 5 जन, 1915 ई. को उन्होंने स्त्रियों को मताधिकार प्रदान किया। 1 दिसंबर,1919 ई. को उन्होंने एक संघ कानून पर हस्ताक्षर किया जिसके अनुसार आइसलैंड को एक स्वतंत्र राज्य स्वीकार किया गया और उनको आइसलैंड नरेश की उपाधि दी गई। 1944 ई. में आइसलैंड ने अपने को डेनमार्क से सर्वथा मुक्त कर लिया। वार्साई के संधि के अनुसार श्लेसविग नार्ड डेनमार्क को मिला और वे वहाँ जुलाई, 1920 ई. में गए।

1940 ई. में जब जर्मनों ने डेनमार्क पर अधिकार कर लिया तब भी उन्होंने आंतरिक व्यवस्था पर अपना नियंत्रण बनाए रखा और अपने शांतिपूर्ण प्रतिरोध द्वारा जनप्रिय बने। जब अगस्त, 1943 ई. में अधिकारासीन जर्मन सेना के विरूद्ध डेनमार्क वासियों ने खुला विद्रोह किया तब क्रिश्चियन एक प्रकार से अपने राजमहल में बंदी हो गए थे। जब जर्मन सेना ने हथियार डाल दिए तब 9 मई, 1945 ई. को उन्होंने स्वतंत्र डेनिश संसद् का उद्घाटन किया। 20 अप्रैल, 1947 ई. को उनकी मृत्यु हुई।


टीका टिप्पणी और संदर्भ