क्रिस्पी फ्रांसेस्को

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लेख सूचना
क्रिस्पी फ्रांसेस्को
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 208
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक पद्मा उपाध्याय

क्रिस्पी फ्रांसेस्को (1819-1901 ई.)। इटली का राजनीतिज्ञ। इसका जन्म 4 अक्तूबर, 1819 को सिसिली में रिबेर नामक स्थान में हुआ था 1846 में नेपल्स में उसने वकालत आरंभ की परंतु सिसली की क्रांति में सक्रिय भाग लेने के कारण उसे पीदमांत में पत्रकार का जीवन अंगीकार करना पड़ा। मिलान में मात्सीनी (Mazini) के साथ षड््यत्रं में भाग लेने के कारण उसे भागकर माल्टा में शरण लेनी पड़ी। वहाँ से भागकर अंत में वह पेरिस पहुँचा। फ्राँस से भी देशनिकला मिलने पर वह कुछ दिनों मात्सीनी के साथ लंदन में रहकर इटली की मुक्ति के हेतु षड्यंत्र करता रहा। जून, 1859 में वह इटली लौटा तथा अपने आपको राष्ट्रीय एकता का समर्थक एवं लोकतंत्रवादी घोषित किया। इन्हीं दिनों उसने मेदिसी तथा गारिबाल्दी के साथ एक क्रांतिसंघ की भी स्थापना की। परिणामस्वरूप गारिबाल्दी सिसली का सेनानायक बना तथा उसकी सरकार के अंतर्गत क्रिस्पी अर्थ एवं गृहमंत्री नियुक्त हुआ। पश्चात्‌ कावूर एवं गारिबाल्दी के पारस्परिक मतभेद के कारण उसे अपना पद त्यागना पड़ा। बाद में इटली की संसद् का सदस्य बनकर गणतंत्रवादी दल के कार्यशील सदस्य के रूप में उसने विशेष ख्याति प्राप्त की। कुछ ही दिनों पश्चात्‌ उसकी राजनीतिक मान्यताओं में बहुत अंतर आया और वह राजतंत्रवाद की ओर झुका। उसका कहना था कि राजतंत्र जनता को एक सूत्र में बाँधता है एवं गणतंत्र उन्हें विभाजित करता है।

1876 ई. में वह संसद् का अध्यक्ष चुना गया। अगले वर्ष उसने लंदन, पेरिस एवं बर्लिन की यात्रा की तथा ग्लैड्स्टन एवं बिस्मार्क जैसे राजनीतिज्ञों से सौहार्द का सम्बंध स्थापित किया। सन्‌ 1877 ई. में वह फिर गृहमंत्री बना। इस पद से देश में एक केंद्रीभूत राजतंत्र की स्थापना में उसने राजा हंबर्ट की सहायता की। फरवरी,1879 ई. में नवें पीयस की मृत्यु के पश्चात्‌ एक धर्मसभा बुलाई गई और क्रिस्पी की अकथनीय चेष्टा का ही यह परिणाम था कि इस सभा की बैठक रोम में हुई। क्रिस्पी के शुत्रओं ने उसके व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेप करना प्रारंभ किया। फलत: उसे पद त्यागना पड़ा। बाद में इटली की संसद् का सदस्य बनकर गणतंत्रवादी दल के कार्यशील सदस्य के रूप में उसने विशेष ख्याति प्राप्त की। कुछ ही दिनों पश्चात्‌ उसकी राजनीतिक मान्यताओं में बहुत अंतर आया और वह राजतंत्रवाद की ओर झुका। उसका कहना था कि राजतंत्र जनता को एक सूत्र में बाँधता है एवं गणतंत्र उन्हें विभाजित करता है।

1876 ई. में वह संसद् का अध्यक्ष चुना गया। अगले वर्ष उसने लंदन, पेरिस एवं बर्लिन की यात्रा की तथा ग्लैड्स्टन एवं बिस्मार्क जैसे राजनीतिज्ञोें से सौहार्द का सम्बंध स्थापित किया। सन्‌ 1877 ई. में वह फिर गृहमंत्री बना। इस पद से देश में एक केंद्रीभूत राजतंत्र की स्थापना में उसने राजा हंबर्ट की सहायता की। फरवरी, 1879 में नवें पीयस की मृत्यु के पश्चात्‌ एक धर्मसभा बुलाई गई और क्रिस्पी की अकथनीय चेष्टा का ही यह परिणाम था कि इस सभा की बैठक रोम में हुई। क्रिस्पी के शत्रुओं ने उसके व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेप करना प्रारंभ किया। फलत: उसे पद त्यागना पड़ा तथा नौ वर्षों तक उसका राजनीतिक जीवन अंधकारपूर्ण रहा। 1887 ई. में वह फिर गृहमंत्री तथा कुछ ही दिनों बाद प्रधान मंत्री बना। त्रिराष्ट्रीय संगठन पर विचार विनिमय के हेतु वह बिस्मार्क से मिला। इंग्लैंड के साथ नाविक सम्बंध स्थापित करने को भी वह उत्सुक था; परंतु फ्रांस के प्रति क्रिस्पी की नीति कुछ भिन्न रही यद्यपि फ्रांसीसी-इतालवी व्यापारिक संधि भी उसने की। 1891ई. में उसने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया; परंतु जनता ने सिसिली में फैली अव्यवस्था के कारण उसकी फिर माँग की और वह 1895 ई. में बड़े बहुमत द्वारा फिर चुना गया। 1898 के चुनाव के बाद वह स्वास्थ्य एवं नेत्रों की दुर्बलता के कारण कार्यभार वहन करने में असमर्थ हो चल तथा 12 अगस्त, 1901में नेपल्स में उसका देहांत हो गया।

क्रिस्पी की महत्ता उसके राजनीतिक सुधारों में नहीं वरन्‌ उसकी अटूट देशभक्ति में निहित है। अपने देशवासियों को जिस राजनीतिक ज्वारभाटे में उसने पथप्रदर्शन किया, वह स्तत्य है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में उसने इटली की शक्ति एवं सम्मान बढ़ाने की अनवरत चेष्टा की तथा उसकी नीति फ्रांस के अतिरिक्त समस्त देशों से मित्रतापूर्ण रही। फ्रांस से भी वह मित्रता का इच्छुक था, परंतु फ्रांस ने इटली को सदा नीचा दिखाने का प्रयत्न किया, अत: स्वाभाविक था कि क्रिस्पी उसके आदेशों के सम्मुख झुकने से इनकार करे। क्रिस्पी का व्यक्तिगत जीवन आक्षेपपूर्ण हो सकता है; परंतु उसका राजनीतिक जीवन सर्वथा निष्कलुष था।


टीका टिप्पणी और संदर्भ