क्रेप
क्रेप
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 220 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
'क्रेप झिलमिल बनावट को रेशमी कपड़ा जो देखने में एक अजीब ढंग का कड़ा और सलवट पड़ा जान पड़ता है। यह कड़े रेशमी सूत से बुना जाता है। इसकी दो किस्में प्रचलित हैं-(1) नर्म पूर्वी अथवा कैंटन क्रेप और कड़ा क्रेप। कैंटन क्रेप देखने में लहरदार दिखाई पड़ता है। इसके बाने का तार दो सूतों को गोंद के साथ उल्टी दिशा में बटकर कड़ा तैयार किया जाता है। बुनते समय कपड़ा एकदम चिकना होता है। उसमें किसी प्रकार की सलवट नहीं होती। बाद में जब उबालकर गोंद निकाल दिया जाता है, वह एकदम नरम हो जाता है और धागे की ऐंठन ढीली हो जाती है जिससे कपड़े में सलवटें पड़ जाती है जो इस वस्त्र की विशेषता मानी जाती हैं। चीनी और जापानी इस प्रकार का क्रेप तैयार करने में निपुण माने जाते हैं।
कड़े क्रेप की कताई और बुनाई सामान्य होती है। उसका क्रेप स्वरूप बुनाई के बाद की प्रक्रिया में निहित है। किंतु इसी क्या प्रक्रिया है यह निर्माता ही जानते हैं और वे उसे गोपनीय रखते हैं। इस प्रकार का क्रेप एक धागे, दो धागे, तीन धागे या चार धागे का बनता है और प्राय: काले रंग में तैयार किया जाता है। इंग्लैंड में यह एसेक्स, नार्विच, यारमथ, मैनचेस्टर और ग्लासगो में बनता है। अब रेशमी क्रेप की नकल पर सूती क्रेप भी बनने लगे हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ