क्रौंच
क्रौंच
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 227 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
क्रौंच (1) जलाशय के किनारे रहनेवाला एक सारस जाति का पक्षी सिसके संबंध में जनप्रवाद है कि इसके जोड़े दिन में तो साथ रहते हैं पर अँधेरा होते ही एक दूसरे से विलग होकर किसी जलाशय के दो किनारों पर जा बैठते हैं और रातभर क्रंदन करते रहते हैं।
भारतीय काव्य साहित्य में इस पक्षी का नाम रामायण की रचना के साथ जुड़ा हुआ है। महर्षि वाल्मीकि नदी स्नान कर लौट रहे थे। एक व्य्घ्राा द्वारा मैथुनरत क्रौंच दंपती पर शरसंधान करते और एक की मृत्यु होते देखा। तत्काल उनके मन में उस पक्षी के प्रति करुणा उत्पन्न हुई और उनके मुख से अनुष्टुप छंद में यह आर्त वाणी फूट पड़ी---
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा: ।
यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।[१]
अकस्मात् मुख से निकले इन शब्दों को वृत्तबद्ध श्लोक का रूप प्राप्त होने का चमत्कार देखकर उनके मन में अत्यंत आश्चर्य हुआ। साथ ही क्रोध में व्याध को इतना कड़ा शाप देने का पश्चाताप भी। इस प्रकार दुखित जब वाल्मीकि बैठे थे तभी ब्रह्मा वहाँ आए और कहा----दुखित होने का कोई कारण नहीं। यह श्लोक तुम्हारी कीर्ति का कारण बनेगा। सभी छंद से तुम रामचरित का वर्णन करो और उन्होंने रामायण की रचना की।
(2) भूगोल की भारतीय पौराणिक कल्पना के अनुसार सात द्वीपों में से एक द्वीप। विष्णुपुराण के अनुसार यह द्वीप दधि-महोदधि से घिरा हुआ है। द्युतिमान यहाँ का शासक कहा गया है। भागवतपुराण में इसे क्षीरसागर से घिरा बताया गया है। प्रिय्व्रात का पुत्र धृतपृष्ठ इसका राजा था। इस द्वीप के सात खंड या वर्ष बताए गए हैं और कहा गया है कि प्रत्येक वर्ष में एक नदी और एक पर्वत है।
(3) हिमालय पर्वतमाला के अंतर्गत एक पर्वत।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि रामायण, बालकांड 2।15