क्षपणक

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लेख सूचना
क्षपणक
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 263
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक जगदीाचंद्र जैनै

क्षपणक तपस्वी जैन श्रमणों को जैन ग्रंथों में क्षपणक, क्षपण, क्षमण अथवा खबण कहा गया है। क्षपणक अर्थात कर्मों का क्षय करने वाला। महाभारत में नग्न जैन मूर्ति को क्षपणक कहा है। चाणक्यशतक में उल्लेख है कि जिस देश में नग्न क्षपणक रहते हो वहाँ धोबी का क्या काम?[१] राजा विक्रमादित्य की सभा में क्षपणक को एक रत्न बताया गया है। यह संकेत सिद्धसेन दिवाकर की ओर जान पड़ता है। मुद्राराक्षस नाटक में जीवसिद्धि क्षपणक को अर्हतों का अनुयायी बताया गया है। यह चाणक्य का अंतरंग मित्र था और ज्योतिषशाष्त्र के अनुसार शुभ अशुभ नक्षत्रों का बखान करता था। बौद्ध भिक्षु को भई क्षपणक कहा गया है। संस्कृत के आर्वाचीन कोशिकारों ने मागध अथवा स्तुतिपाठक के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नग्नक्षपण के देशे रजक किं करिष्यति ?