खपरैल और चौके

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लेख सूचना
खपरैल और चौके
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 300
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक कार्तिकप्रसाद

खपरैल और चौके भारतवर्ष में मिट्टी की पकाई हुई खपरैल तथा चौके तीन प्रकार के बनाए जाते है :

1-छत के लिए विभिन्न प्रकार की खपरैलें तथा चौकेचित्र:Tile-and-Chokes.jpg

2-फर्श के लिए चौकेचित्र:Tile-and-Chokes-1.jpg


3-नाली के लिए नाल तथा अर्धगोल खपरैल

इनके अलावा चीनी मिट्टी के ग्लेज किए हुए तथा सीमेंट के चौके फर्श तथा दीवाल पर जड़ने के लिए भी बनाए जाते हैं, जो कई आकृतियाँ तथा रंगों के होते हैं।


छत छाने के लिए ऐसबेस्टस तथा अन्य वस्तुओं के भी तरह तरह के चौके अथवा टाइलें भिन्न भिन्न आवश्यकताओं के लिए प्रयोग में आती हैं जैसे संगमर्मर, स्लेट, टेराकोटा इत्यादि के चौके।चित्र:Tile-and-Chokes-3.jpg

मिट्टी के चौके और खपरैल प्राय: उसी प्रकार बनाई जाती हैं जैसे ईटं, पर इनके बनाने में अधिक मेहनत और ध्यान देना पड़ता है। इन खपरैलों तथा चौकों की तरह तरह की डिजाइनों के लिए फर्मा बहुत सावधानी से तथा सच्चा बनाना पड़ता है और उनके पकाने और निकासी में बहुत सावधानी रखनी पड़ती है।

छत छाने के लिए स्थानीय देशी खपरैल से लेकर स्यालकोट, इलाहाबाद, मँगलौर इत्यादि में अच्छे मेल की खपरैल काफी बनती थीं, पर इनका प्रचलन अब धीरे धीरे सीमेंट कंक्रीट तथा प्रबलित ईटोंं (reinforecd-bricks) के कारण कम होता जा रहा है।चित्र:2Tile-and-Chokes.jpg


देशी खपरैलों में दो प्रकार की खपरैलें अधिक प्रचलित हैं। एक में दो अधगोली नालीदार खपरैलें एक दूसरे पर आैंधाकर रख दी जाती हैं। दूसरे में दो चौकोर चौके, जिनके किनारे, थोड़ा सा ऊपर मुड़े रहते हैं, अगल बगल रखकर उन दोनों के ऊपर एक अधगोली खपरैल उलटकर रख दी जाती है, जिससे दोनों चौकों के बीच की जगह ढक जाए। करीब 1,200 खपरैलें 100 वर्गफुट छत छाने के लिए अपेक्षित होती हैं।

मँगलोर चौके चिपटे होते हैं। इनमें आपस में एक दूसरे को फँसाने के लिए खाँचा बना रहता है। करीब 130 दक्षिणी चौके या 100 कानपुरी चौके 100 वर्गफुट छत छाने के लिए आवश्यक होते हैं।चित्र:Tile-and-Chokes-4.jpg

इलाहाबादी टाइल का नमूना चित्र में देखिए। इनसे एकहरी या दोहरी छवाई की जाती है। उभरे हुए भाग (ridge), कटि प्रदेश (hip) तथा निम्न भूमि (valley) के लिए विशेष टाइलें बनानी पड़ती हैं। नाली के लिए जो टाइल या चौके बनते हैं, या तो चिपटे

बनाकर सुखाने तथा पकाने से पहले लकड़ी के गोल फर्मे पर मोड़ लिए जाते हैं, अथवा आरंभ में ही अधगोले के आकार में मशीन द्वारा ढाल लिए जाते हैं।ग्लेज़ किए हुए चीनी मिट्टी के चौके महँगे होते हैं और स्नानागार अस्पताल तथा अन्य स्थानों पर सौंदर्य तथा सफाई के विचार से फर्श या दीवाल में सीमेंट द्वारा बैठा दिए जाते हैं। अब सीमेंट के मोज़ेइक टाइल भी बहुत बनने लगे हैं और इनका प्रचलन दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। ये सब कई डिजाइनों तथा रंगों के बनते हैं और इनसे बने फर्श बहुत सुंदर लगते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ