खस
खस
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 308 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खस एक प्राचीन जाति, जो कदाचित शकों की कोई उपजाति थी। मनु ने इन्हें क्षत्रिय बताया है किंतु कहा है कि संस्कार लोप होने और ब्राह्मणों से संपर्क छूट जाने के कारण वे शूद्र हो गए। महाभारत के सभापर्व एवं मार्कंडेय तथा मत्स्यपुराण में इनके अनेक उल्लेख प्राप्त होते है। समझा जाता है कि महाभारत में उल्लिखित खस का विस्तार हिमालय में पूर्व से पश्चिम तक था। राजतरंगिणी के अनुसार ये लोग कश्मीर के नैऋ त्य कोण के पहाड़ी प्रदेश अर्थात् नैपाल में रहते थे। अत: वहाँ के निवासियों को लोग खस मूल का कहते हैं।
सिल्वाँ लेवी की धारणा है कि खस हिमालय में बसनेवाली एक अर्धसंस्कृत जाति थी जिसने आगे चलकर हिंदू धर्म ग्रहण कर लिया। यह भी धारणा है खस लोग काश्गर अथवा मध्य एशिया के निवासी थे और तिब्बत के रास्ते वे नैपाल और भारत आए।
टीका टिप्पणी और संदर्भ