खसम
खसम
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 308 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खसम हटयोग साधना का एक पारिभाषिक शब्द जो ख + सम से बना है और इसका मूल अर्थ है ख (आकाश) के समान। हठयोग साधना का उद्देश्य चित्त को सारे सांसारिक धर्मों से मुक्तकर उसे निर्लिप्त बना देना था। इस सर्वधर्मशून्यता को मन की शून्यावस्था कहते हैं और शून्य का प्रतीक गगन है। अत: परिशुद्ध, स्थिर, निर्मल चित्त को खसम कहते हैं। सिद्धाचार्यों द्वारा बोधिचित्त की साधना में मन को खसम स्वरूप (शून्य स्वरूप) धारण करने का उपदेश दिया गया है। पलटूदास आदि संतों ने भी इसी अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया है। इस शब्द का प्रयोग कुछ संतों ने इस अर्थ के अतिरिक्त पति और प्रियतम के अर्थ में किया है; किंतु वहाँ इसके मूल में फारसी शब्द खसम (पति) है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ