खादी
खादी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 312 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | ध्वजाप्रसाद साहू |
खादी चरखे पर कते सूत से हाथकरघे द्वारा तैयार किया गया वस्त्र। अन्न वस्त्र जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी विदेशों पर रहने की विवशता दूर करने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने खादी के निर्माण और उपयोग पर विशेष जोर दिया था। फलस्वरूप देश में चरखासंघ की स्थापना हुई और खादी का कार्य उत्तरोत्तर अग्रसर होने लगा।
महात्मा गांधी का संदेश था कि देश का प्रत्येक व्यक्ति चरखा चलाए और खादी पहने। खादी और चरखे का प्रयोग देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अमोघ, अहिंसक अस्त्र के रूप में जनता ने करना आरंभ किया और वह कांग्रेस के नेतृत्व में हुए स्वातंत््रय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अंग बनी। स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद राष्ट्रीय सरकार ने खादी का कार्य आगे बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया। खादी और ग्रामोद्योग कमीशन की स्थापना की गई। उसके तथा आंदोलनकालीन चरखासंघ की प्रेरणा से संप्रति छोटी बड़ी हजारों संस्थाएँ देश में काम कर रही हैं। इन सबके उद्योग से प्रतिवर्ष करोड़ों रूपयों की खादी तैयार होती है। लाखों व्यक्ति सूत कातने और बुनकरों का काम करते हैं। इनके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न छोटे मोटे कार्यो पर भी हजारों व्यक्ति नियोजित हैं।
किंतु जितनी खादी तैयार होती है, उतनी सब की सब देश में नही खप पाती। सरकार खादी को प्रोत्साहित करने के निमित्त ग्राहकों को देने के लिए कमीशन के रूप में मूल्य में कमी करने के लिए खादी विक्रेताओं को यथेष्ट सहायता प्रदान करती है। खादी के निर्माता प्रतिष्ठानों को भी अनुदानादि देकर सरकार नियमित रूप से वित्तीय सहायता पहुँचाती है।
इस प्रकार खादी के प्रचार की चेष्टा पिछले ४० वर्षो से की जा रही है, परंतु जितने विस्तृत और व्यापक रूप में राष्ट्रपिता इसका व्यवहार देश में कराना चाहते थे उतने विस्तृत और व्यापक रूप में इसका प्रचार नहीं हो पाया है। सरकार द्वारा संघटित खादी और ग्रामोद्योग कमीशन इसके लिए सचेष्ट है और खादी उद्योग की बहुविध सहायता करता रहता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ