खीव
खीव
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 324 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खीव उजबेक रूस के खौरेज्म प्रांत में आमू नदी के निकट खीव मरूद्यान में स्थित नगर (स्थिति : 410 30’ उ. अ. तथा 600 18’ पू. दे.)। नदी के लगातार पूर्व में खिसकने अर्थात् मार्गपरिवर्तन से नखलिस्तान में सिंचाई की कठिनाई होने से सिंचित क्षेत्र बहुत कम हो गया। इस कारण यह नगर उन्नति नहीं कर सका है।
यहाँ कपास साफ करने, तेल निकालने तथा हस्तकला की वस्तुओं का उद्योग होता है। प्राचीन ऐतिहासिक भवनों में इस्लाम खोदझा की मीनार, आश्रम और भूतपूर्व खाँ लोगों का विशाल मकबरा तथा खाँ का महल, जो अब संग्रहालय है, प्रसिद्ध हैं।[१]
खीव एक युग में महान् राज्य था जो विभिन्न कालों में कोरस्मिया, ख्वारेज्म और जुर्जानिया (जुर्गेज, उरगेंज) के नाम से पुकारा जाता रहा है। उन दिनों वक्षु (आमू दरिया) मध्य एशिया और यूरोप के बीच कास्पियन सागर के राह से जलमार्ग का काम देती थी। कोरेस्मिया का उल्लेख हेरोदोतस के इतिहास में पाया जाता है। उन दिनों यह ईरानी साम्राज्य का एक अंग था। दारा ने वहाँ एक क्षत्रप नियुक्त कर रखा था। किंतु 680 ई. से पूर्व का उसका विशेष इतिहास ज्ञात नहीं है। जब यह अरबों के अधिकार में आया और खलीफा की शक्ति का ्ह्रास हुआ तो प्रांतीय शासक स्वतंत्र हो गए। इतिहास में प्रथम ज्ञात शासक 995 ई. में मामून-इब्न-मुहम्मद हुआ। 1017 ई. में महमूद गजनी ने उसपर अधिकार किया। पश्चात् वह सेल्जुक तुर्कों के हाथ आया। 1099 ई. में प्रांतीय शासक कुतुबुद्दीन ने राज्याधिकार हस्तगत कर लिया। पश्चात् उसके वंशज अलाउद्दीन मुहम्मद ने ईराक तक अपना अधिकर किया। 1219 ई. में चंगेज खाँ का उत्थान आरंभ हुआ उन दिनों यह मध्य एशिया का सबसे बड़ा नरेश था। 1379 में तैमूर ने इस भू भाग पर अधिकार किया और 1512 ई. में वह उजबेकों के हाथ लगा।
17वीं शती में खीव रूसियों के संपर्क में आया। येक (उराल नदी का प्राचीन नाम) के काँठे में रहनेवाले कज्जाक लोगों को कास्पियन सागरीय प्रदेश में धावा मारने के प्रसंग में जब इस धनिक प्रदेश की बात ज्ञात हुई तो उन्होंने इसके मुख्य नगर उरगेंज को लूटने के लिये अनेक धावे किए। 1717 ई. में रूस सम्राट् पीतर महान् का जब वक्षु (आमू) नदी में लौह मिश्रित बालू की बात ज्ञात हुई तो कुछ इस कारण और कुछ तूरान के रास्ते भारत से व्यापारिक संपर्क स्थापित करने के उद्देश्य से खीव के खान हार गए। किंतु शीघ्र ही खीववासियों ने छल करके रूसी सेना को नष्ट कर दिया।
खीव की ओर रूस का ध्यान 19वीं शती के तिसरे दशक में पुन: गया। 1839 में जनरल पेरोवस्की ने उसपर अधिकार करने का प्रयास किया। इस बार भी रूसियों को मुँह की खानी पड़ी और विनाश का सामना करना पड़ा। 1847 ई0 में रूसियों ने सीर दरिया के मुहाने पर एक दुर्ग खड़ा किया। फलस्वरूप खीव के लोगों को अपना न केवल भू भाग खोना पड़ा वरन् उनके हाथ से कर देने वोले खिरगिजी भी निकल गए और रूसियों को आगे के अभियान के लिये एक आधार प्राप्त हुआ। 1869 में कास्पियन सागर के पूर्वी तट पर क्रस्नोवोदक नगर की स्थापना हुई और 1871-72 में खीव जाने वाले भू भाग की रूसी तुर्किस्तान के विभिन्न भागों से काफी जाँच पड़ताल करने के बाद 1873 मे खीव के विरुद्ध बड़े पैमाने पर सैनिक अभियान आरंभ हुआ और 10 हजार सैनिक लेकर जनरल काफमैन मीन ओर से क्रस्नोवोदस्क, ओरेनबुर्ग और ताशकंद से खीव की ओर बढ़े और बिना अधिक श्रम किए वक्षु नदी के दाहिने किनारे स्थिति 35,700 वर्ग मील भूमि को रूस में सम्मिलित कर लिया। खान को भारी कर देने पर बाध्य किया।
1919 में सोवियत सरकार ने खीव के खान को निष्कासित कर खीव को अपने पूर्णअधिकार में ले लिया। अब रूसी, तुर्किस्तान, खीव, बुखारा तथा कास्पियन तटवर्ती प्रदेशों को मिला कर दो सोवियत समाजवादी गणराज्य-उजबेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान बन गए हैं। अक्टूबर, 1624 में ये दो गणराज्य सोवियत संघ में सम्मिलित हो गए।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रा. प्र. सिं.