खुसरू
खुसरू
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 330 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खुसरू ईरान के सासानी वंश के दो शासकों का नाम। प्रथम खुसरू को खुसरू अनुशिखान कहते हैं। यह 531 ई. में शासनारूढ़ हुआ और बजंतीन नरेश जस्तीनियन प्रथम पर आक्रमण किया। शीघ्र ही दोनों में संधि हो गई। किंतु 540 ई. में खुसरू ने अंतिओख नगर को ध्वस्त कर कालासागर और काकेेशस के प्रदेशों को अपने अधिकार में कर लिया। 562 ई. में उसने पुन: बजंतीन पर आक्रमण किया। यह युद्ध 571 ई. तक चलता रहा। 573 ई. में उसने दारा के दुर्ग पर अधिकार किया किंतु 576 ई. में उसे पराजय का मुख देखना पड़ा। खुसरू एक योग्य किंतु कठोर शासक था। उसने राज्यकर व्यवस्था में सुधार किया और जरदुस्थरी की उपासना को पुनप्रतिष्ठित किया। इसके शासनकाल में पहलवी साहित्य ने प्रचुर उन्नति की। उसकी मृत्यु 579 ई. में हुई।
खुसरू (द्वितीय)-इसे खुसरू परवेज कहते हैं। यह प्रथम खुसरू का पौत्र था। यह बजंतीन नरेश माँरिशियस की सहायता से 590 ई. में गद्दी पर बैठा। जब 602 ई. में माँरिशियस की हत्या कर दी गई तब इसने बजंतीन साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया और दक्षिणी-पश्चिमी एशिया के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया। 616 ई. में उसका मिस्र पर अधिकार हुआ। 617 ई. में वह कुस्तुंतुनिया के दूसरी ओर कैल्सिडोन तक जा पहुँचा। 623 और 628 ई. के बीच हेराक्लियस ने धीरे धीरे उसे दजला (Tigris) नदी तक खदेड़ दिया। बाद में उसके पुत्र कवथ द्वितीय ने उसे पदच्युत कर दिया और पीछे उसको मार भी डाला।
टीका टिप्पणी और संदर्भ