खुसरू सुलतान
खुसरू सुलतान
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 330 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कष्णमोहन गुप्त |
खुसरू सुलतान मुगल शासन का एक प्रमुख अधिकारी। इसका पिता नजर मोहम्मद खाँ बलख बदख्शाँ का शासक था। 1055 हिजरी में उसने अपने द्वितीय पुत्र खुसरू सुलतान को बदख्शाँ की राजधानी कंदोज का मुख्य शासक बना दिया। जब मोहम्मद खाँ के शासन में घोर अशांति मची तो उसे हटा कर खुसरू सुलतान को बदख्शाँ का शासक बनाया गया।
खुसरू सुलतान अलमानों और उजबकों के अत्याचार से तंग आ गया था। इस अवसर का लाभ उठाकर मुगल सम्राट् शाहजहाँ ने सोचा कि एक बड़ी सेना भेजकर बलख और बदख्शाँ के पैतृक प्रांत को जीत लिया जाय। फलत: उसने वहाँ अपनी सेना 10वें राजवर्ष में भेजी। जैसे ही शाही सेना बलख और बदख्शाँ की सीमाओं पर पहुँची, अलमान और उजबक भाग खड़े हुए। खुसरू सुलतान अपने पुत्र बदीअ सुलतान के साथ शाहजहाँ से मिलने आया। धूमधाम से उसका स्वागत किया गया। जब वह काबुल पहुँचा, तो शाहजहाँ उससे बड़े प्रेम से मिला। उसे 50,000 रुपया तथा छह हजारी 2,000 सवार का मनसब प्रदान किया। खानदौराँ बहादुर जहाँ रहता था, वहीं इसे सत्कारपूर्वक रहने को स्थान दिया गया। बदीअ सुलतान को भी 12,000 वार्षिक वृत्ति दी गई। यहाँ खुसरू सुलतान बड़ी शांति और बड़े सुख के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगा। इच्छानुसार यह कभी दिल्ली में रहता था, कभी लाहौर में। 26वें वर्ष इससे मनसब लेकर इसे एक लाख वार्षिक वृत्ति देना शाहजहाँ ने आरंभ किया। तत्पश्चात् उसके पुत्र को मनसब प्राप्त हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ