खैरपुर
खैरपुर
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 335 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खैरपुर सक्खर से 20 मील दक्षिण और सिंध नदी से 15 मील पूर्व मीरवाह नामक नहर पर स्थित पश्चिमी पाकिस्तान का नगर।[१] पहले यह खैरपुर रियासत की राजधानी था और उत्तरी सिंध के प्रधान मीर यहाँ रहते थे जो जाति के बलूची थे और तालपुर कहलाते थे। सिंध के कल्होरा वंश के पतन के पश्चात ये उठे थे। 1813 से पूर्व ये लोग अफगानिस्तान के शासकों को खिराज देते थे। काबुल की राजनीतिक अशांति के समय इन्होंने खिराज देना बंद कर दिया और स्वतंत्र हो गए। 1832 में अंग्रेजों ने खैरपुर के मीर की स्वतंत्रता को मान्यता दी और पाकिस्तान बनने तक रियासत के रूप में स्वतंत्र अस्तित्व था। जब अंगरेजों ने काबुल पर सैनिक अभियान करने का निश्चय किया। तब खैरपुर के तत्कालीन मीर अलीमुराद ने अंग्रेजों की नीति का समर्थन किया। उसी के प्रतिदान स्वरूप जब मियानी और डाबानी लड़ाइयों के बाद सिंध अंग्रेजी राज्य का अंग बन गया, उन्हें स्वतंत्र रियासत के रूप में बने रहने दिया गया।
खैरपुर नगर अनियमित ढंग से बसा हुआ है। अधिकांश मकान कच्चे हैं। यहां वस्त्र बुनने, रँगने, कालीन बनाने, आभूषण बनाने तथा अस्त्र बनाने का काम होता है। ऊन, सिल्क, कपास, धातुएँ और कपड़े की वस्तुएँ आयात की जाती हैं। यहाँ एक महल, एक अतिथिगृह और पीर रु हाँ (जियाउद्दीन और हाजी जफल शहीद) के स्मारक हैं।[२]