खैर मुनिया

अद्‌भुत भारत की खोज
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लेख सूचना
खैर मुनिया
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 335
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

खैर मुनिया श्येन परिवार का एक शिकारी पक्षी जो संसार के अनेक देशों में पाया जाता है। भारत में यह हिमालय में काफी ऊँ चाई तक देखा जाता है। यह जाड़ों में पहाड़ों से नीचे उतर कर सारे देश में फैल जाता है और जाड़ा समाप्त होने पर फिर उत्तर की ओर पहाड़ों में लौट जाता है। इसकी एक जाति नीलगिरि के आसपास पायी जाती है जो जाड़ों में त्रिवांकुर तक फैल जाती है। यह खुले मैदानों, खेतों और झाड़ियों वाले ऐसे स्थानों में रहता है जहाँ इसे कीड़े मकोड़े, टिड्डे, चूहे, छिपकली तथा अन्य छोटे जंतु खाने को मिल सकें। यह छोटी मोटी चिड़ियों को भी आसानी से पकड़ लेता है। यह अपना अधिक समय आकाश में उड़ते हुए बिताता है। हवा में चक्कर लगाते हुए यदि जमीन पर कोई शिकार दिखाई पड़ जाए तो वह ऊपर से सीधे नीचे तीर की तरह आता है और झपट्टा मार कर उसे पकड़ लेता है। अपनी इस आदत के कारण यह आसानी से पहचाना जा सकता है।

इसके नर के सिर का ऊपर का भाग और गरदन के अगल बगल के हिस्से राखीपन लिए स्लेटी और महीन काली रेखाओं से भरे रहते हैं। चोंच की जड़ के पास से गले तक एक सिलेटी पट्टी होती है; चेहरे के दोनों भाग सफेद और गाढ़ी भूरी धारियों के बने होते हैं। शरीर के नीचे का भाग हलका ललछौंह लिए भूरा और सीने और बाजुओं पर भूरी बिंदियाँ और लकीरें होती हैं। मादा के शरीर का ऊपरी भाग चटक ललछौंह भूरा होता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ