खोंग
खोंग
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 335 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खोंग अराकान प्रदेश निवासी एक जनसमाज। इनकी अपनी भाषा और अपनी लिपि है। इस कारण विद्वानों की धारणा है कि अति प्राचीन काल से एक सुशिक्षित समाज रहा है। इस समाज में स्त्री पुरुष दोनों की एक सी वेशभूषा होती है। इनके बीच इस संबंध में एक अनुश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में अराकान के किसी राजा की एक रूपवती रानी थी। राजा उसी के प्रेम मे निमग्न रहकर राजकाज की उपेक्षा करने लगा। जब रानी ने यह देखा तो वह स्वयं राजकाज देखने लगी। उसकी सुव्यवस्था देखकर प्रजा उसे देव समान मानने लगी। रानी ने देखा कि लोग स्त्रियों को पुरुषों की उपेक्षा हेय मानते हैं। उसे यह बात अच्छी न लगी। उसने आदेश दिया कि स्त्रियाँ पुरुषों के समान लुंगी धारण करेंगी और पुरुष केश बढ़ायेंगे और हाथ पाँव में गुदना गुदवाएँगे। प्रजा ने रानी की इस आज्ञा का पालन किया और आज तक यह बात मान्य होती चली आ रही है।
ये लोग बौद्ध धर्मावलंबी हैं। विवाह प्रसंग में लड़के का पिता लड़की के घर जाकर अपने लड़के के लिए लड़की माँगता है। इस संबंध के स्वीकार करने या न करने पर गाँव के चार प्रतिष्ठित जनों के सामने विचार होता है और एक मुर्गे के माध्यम से शुभाशुभ का विचार कर निर्णय किया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ