गंधर्व विवाह
गंधर्व विवाह प्राचीन भारतीय स्मृतिकारों ने विवाह के जो आठ प्रकार मान्य किए थे, उनमें से एक रूप। इस विवाह में अभिभावकों की अनुमति की आवश्यकता न थी। युवक युवती के परस्पर राजी होने पर किसी श्रोत्रिय के घर से लाई अग्नि में हवन कर तीन फेरे कर लेने मात्र से इस प्रकार का विवाह संपन्न हो जाता था। इसे आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन रूप कह सकते हैं। इस प्रकार का विवाह करने के पश्चात् वर-वधु दोनों अपने अभिभावकों को अपने विवाह की रिस्संकोच सूचना दे सकते थे क्योंकि अग्नि को साक्षी देकर किया गया विवाह भंग नहीं किया जा सकता था। अभिभावक भी इस विवाह को स्वीकार कर लेते थे। किंतु इस प्रकार का विवाह लोकभावना के विरुद्ध समझा जाता था, लोग इस प्रकार किए गए विवाह को उतावली में किया गया विवाह मानते थे। लोगों की धारणा थी कि इस प्रकार के विवाह का परिणाम अच्छा नहीं होता। शकुंतला-दुश्यंत, पुरुरवा-उर्वशी, वासवदत्ता-उदयन के विवाह गंधर्व-विवाह के प्रख्यात उदाहरण हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ