गांधर गंधार
गांधर गंधार
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 350 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विजयेंद्र कुमार माथुर |
गांधर गंधार(1) सिंधु नदी के पूर्व और उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित देश जिसमें वर्तमान अफगानिसतान का पूर्वी भाग सम्मिलित था। ऋग्वेद (1,126,18) में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है और उनकी भेड़ों के ऊन को सराहा गया है। अथर्ववेद (5,22,14) में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है। अथर्ववेद में गंधारियों की गणना अवमानित जातियों में की गई है। किंतु परवर्ती काल में गंधारवासियों के प्रति आर्यजनों का दृष्टिकोण बदल गया था और गंधार में बड़े बड़े विद्वान और पंडित जाकर बसने लगे थे। बौद्धकाल से पूर्व तक्षशिला गंधार की लोकविश्रुत राजधानी थी जो अपने विद्याकेंद्र के कारण भारत भर में सर्वमान्य समझी जाती थी। छांदोग्योपनिषद् में उद्दालकआरूणि ने सदगुरूवाले शिष्य के अपने अंतिम लक्ष्य पर पहुंचने के उदाहरण के संबंध में गंधार का उल्लेख किया है। जान पड़ता है, छांदोग्य के रचयिता का गंधार विशेष रूप से परिचित देश था। शतपथ ब्राह्मण के (11,41) तथा अनुवर्ती वाक्यों में उद्दालक आरूणि का उदीच्यों या उत्तरी देश (गंधार) के निवासियों के साथ संबंध बताया गया है। पाणिनि ने, जो स्वयं गंधार देश के निवासी थे, तक्षशिला का (4,3,93) उल्लेख किया है। ऐतिहासिक अनुश्रुति में कौटिल्य चाणक्य को तक्षशिला महाविद्यालय का ही रत्न बताया गया है।
वाल्मीकि रामायण (उत्तर. 101,11) में गंधार विषय के अंतर्गत गंधर्वदेश की भी स्थिति मानी गई है। केकय जनपद इसके पूर्व की ओर स्थित था। केकयनरेश युधाजित के कहने से रामचंद्र के भाई भरत ने गंधर्वदेश को जीतकर यहां की तक्षशिला एवं पुरूकलावती नामक नगरियों को भले प्रकार से बसाया था। महाभारत काल में गंधारदेश का मध्यदेश से बहुत निकट का संबंध था। धृतराष्ट्र की रानी गांधारी, गंधार की राजकन्या थीं। शकुनि इसका भाई था। जातकों में कशमीर और तक्षशिला प्रदेश दोनों की ही स्थिति गंधार में बताई गई है। तक्षशिला के अनेक उल्लेख जातकों में हैं। इस समय यह नगरी एक प्रसिद्ध विश्व्विद्यालय के केंद्र रूप में दूर दूरतक प्रख्यात थी। पुराणों (मत्स्य 48।6; वायु 99,9) में गंधार नरेशों को द्रुह्यु का वंशज बताया गया है। जैन उत्तराध्ययन सूत्र में गंधार के जैर नरेश नग्गति या नग्नजित् का उल्लेख है। बुद्ध तथा पूर्व बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के 16 जनपदों में परिगणित था (अंगुत्तरनिकाय)। सिकंदर के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी छोटी रियासतें थीं जिनमें तक्षशिला और अभिसार प्रमुख थी।
मौर्य साम्राज्य में संपूर्ण गंधारदेश सम्मिलित था। कुशान साम्राज्य का भी यह अभिन्न अंग था। इसी समय यहाँ की नई राजधानी पुरुषपुर या पेशावर में बनाई गई थी। इस काल तक्षशिला का पूर्वगौरव समाप्त हो गया था। गुप्तकाल में गंधार संभवत: गुप्त साम्राज्य के बाहर था क्योंकि उस समय यहाँ यवन, शक आदि विदेशी जातियों का प्रभुत्व था। 7वीं सदी ई. में गंधार के अनेक भागों में बौद्धधर्म पर्याप्त उन्नत था। 8वीं 9वीं सदी ई. में मुसलमानों के उत्कर्ष के साथ धीरे धीरे यह देश उन्हीं के राजनीतिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव के अंतर्गत आ गया। 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया किंतु इसके बाद भी यहां के हिंदू तथा बौद्ध अनेक क्षेत्रों में रहते रहे जैसे वे आज भी रह रहे हैं। अलप्तगीन और सुबुक्तगीन के हमलों का भी उन्होंने डटकर समाना किया था। 990 ई. में लमगान (प्राचीन लंपाक) का किला उनके हाथ से निकल गया और इसके बाद काफिरिस्तान को छोड़कर सारा अफगानिस्तान मुसलमान धर्म में दीक्षित हो गया। प्रसिद्ध नगर कंधार आज भी प्राचीन गंधार की स्मृति को जीवित रखे हुए हैं।
(2) गंधार (स्याम)-स्याम के उत्तरी भाग में स्थित युन्नान का प्राचीन भारतीय नाम। चीनी इतिहास ग्रंथो से सूचित होता है कि द्वितीय शती ई. पू. में ही इस प्रदेश में भारतीयों ने उपनिवेश बसा लिए थे और ये लोग बंगाल, असम तथा ब्रह्मदेश के व्यापारिक स्थलमार्ग से वहाँ पहुंचे थे। जैसा तत्कालीन मुसलमान लेखक रशीदुद्दीन के वर्णन से ज्ञात होता है, 13वीं सदी ई. तक युन्नान का भारतीय नाम गंधार ही अधिक प्रचलित था। इस प्रदेश का चीनी नाम नानचाओ था। 1253 ई. में चीन क सम्राट कुबला खाँ ने गंधार को जीतकर यहाँ के हिंदु राज्य की समाप्ति कर दी। सप्तक का तीसरा स्वर। भारतीय संगीत का एक राग।
टीका टिप्पणी और संदर्भ