गाब्रिएल दे आनंत्सियों

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
गाब्रिएल दे आनंत्सियों
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 375
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. रामसिंह तोमर

आनुंत्सियों, गाब्रिएल दे (1863-1938 ई.) प्रसिद्ध इतालीय साहित्यकार, पत्रकार, योद्धा और राजनीतिज्ञ आनुंत्सियो का जीवन बहुत घटनापूर्ण रहा। वह विलास और वैभव का प्रेमी था। यूरोपीय रोमांसकालीन परवर्ती साहित्य की प्रवृत्तियों के समन्वय की अपूर्व क्षमता आनुंत्सियों की रचनाओं में मिलती है। भाषा की दृष्टि से उसे अलंकारवादी कहा जा सकता है। कविता, नाटक, उपन्यास, गद्यकाव्य सभी कुछ उसने लिखा।

इसकी प्रारंभिक रचनाएँ प्रीमो बेटे (कविताएँ) में संगृहीत हैं। अन्य काव्यकृतियों में 'कांतो नीवो' 'इंतरमेज्जो दी रीमे', 'एलेजिए रोमाने', 'ईसोंतेओ ए ला कीमेरा', 'पोएमा पारादीसियाको', 'ले लाउदी', हैं। प्रसिद्ध उपन्यासों में 'इल प्याचे', 'लरे', 'इंतोचेले', 'इल फुवाको' आदि हैं। नाट्यकृतियों में 'फ्रांचेस्का दा रीमिनी', 'ला फील्या दी योरियो', 'ला नावे' आदि हैं। 'ले नोवेल्ले देल्ला पेस्कारा' उसकी कहानियों का प्रसिद्ध संग्रह है। आत्मकथात्मक गद्यकाव्य की दृष्टि से 'कोंतेंलात्सियोने देल्ला मोर्ते' तथा 'लीवरो सेग्रेतो' उल्लेखनीय हैं।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-लेखक की संपूर्ण कृतियों का राष्ट्रीय संस्करण-रोम से 1927-36 तथा 1931 में निकला; पी. पाक्रात्सी: स्तुदी सुल द', आनुंत्सियो, तूरिन, 1939; इतालीय साहित्य का इतिहास, जिल्द 3, नातालीनो सापेन्यो आदि।