गोंडा
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गोंडा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 11 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलाश नाथ सिंह |
गोंडा उत्तर प्रदेश के सरयूपार क्षेत्र में स्थित अपेक्षाकृत विस्तृत जनपद जिसका क्षेत्रफल 2,829 वर्ग मील है। इस जनपद को तीन प्रमुख प्राकृतिक खंडों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम, राप्ती पार का तराई क्षेत्र जो उप-पर्वतीय तलहटी में स्थित होने के कारण अधिकतर नदी नालों तथा उनके पुराने त्यक्त मार्गों एवं झीलों से पूर्ण, दक्षिण में दलदली किंतु गाढ़ी मटियार भूमि के कारण धान के लिये अत्यंत उपजाऊ तथा उत्तर में बनों से ढका हुआ है। राप्ती क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आती है। द्वितीय, उपरहार क्षेत्र, जो उत्तर में राप्ती तथा ऊपरहार के उत्थित बलुआ किनारे (Uparhar edge) के मध्य उत्तरपश्चिम से दक्षिण-पूर्व में विस्तृत उत्थापित मैदान है। नदी नालों द्वारा यह उपजाऊ घाटियों में बँट गया है, नदियों के किनारे जंगल तथा बलुई मिट्टी मिलती है। इस क्षेत्र में उतरौला तहसील का दक्षिणी भाग, गोंडा परगने का अधिकांश क्षेत्र तथा तारबगंज तहसील महदेवा एवं नवाबगंज परगने के क्षेत्र पड़ते हैं। तृतीय, उपरहार के दक्षिणी छोर से सरयू (घाघरा) तक का क्षेत्र, जो नदी तक 15 फुट निम्नतर होता जाता है और तरहार कहलाता है। इसमें सरयू (घाघरा) तथा उसकी सहायक टेढ़ी नदियों की बाढ़ कभी कभी भयंकर हो जाती है। इस क्षेत्र में तारबगंज का अधिकांश तथा गोंडा तहसील का पहाड़पुर परगना पड़ता है। यहाँ मिट्टी की निचली परतें बलुई हैं जिनपर विभिन्न मुटाई की दोमट परतें जमी हुई हैं। कहीं कहीं बलुए धूस मिलते हैं जिनके नीचे गहरी तथा उपजाऊ मटियार मिट्टी मिलती है।
तराई क्षेत्र में अधिकांशत: गढ़ी मटियार, किंतु कहीं कहीं उपजाऊ दोमट; उपरहार के लगभग दो तिहाई क्षेत्र में दोमट, ऊपरी तथा नदी तटवाले भागों में बलुई, तरहार में हल्की तथा छिद्रयुक्त दोमट, तटीय भागों में बलुई तथा केवल गड्ढों में मटियार मिट्टी मिलती है। तराई में धान, उपरहार में धान, गेहूँ और तेलहन तथा तरहार में मकई, गेहूँ और जायद की फसलें मुख्य हैं। इस जिले में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर बहनेवाली नदियाँ बूढ़ी राप्ती, राप्ती, कुवाना, विसूटी, मनवर, तिरही, सरजू (घाघरा) हैं। राप्ती (केवल वर्षा ऋतु में) तथा घाघरा परिवहनीय हैं। उपयुक्त भूमि एवं अनुकूल जलवायु होने के कारण कुल भूमि के 67.8 प्रति शत में कृषि होती है; 5.7 प्रति शत वनाच्छादित (अधिकांश तराई के उत्तरी भाग में), 3.2 प्रति शत चालू परती (Current fallors) तथा 9.2 प्रति शत कृषि के लिये अप्राप्य है जिसमें 5.2 प्रति शत जलाशय हैं। चालू धरती के अतिरिक्त 19.9 प्रति शत भूमि कृष्य बंजर (Cultivable waste) है जिसका केवल 15 प्रति शत खेती के लिये समुन्नत किया जा सकता है। धान, मकई, गन्ना आदि खरीफ तथा गेहूँ, जौ, चना, तेलहन प्रमुख रबी की फसलें हैं। जनपद में 1961 की जनगणना के अनुसार गोंडा[१] बलरामपुर[२] उतरौला[३]कर्नलगंज[४] तथा नवाबगंज[५]प्रसिद्ध नगर तथा कस्बे हैं। जिले के व्यापार छोटी छोटी हाटों तथा बाजारों और प्रधानतया उपर्युक्त नगरों द्वारा होता है। यातायात की दृष्टि से अपेक्षाकृत यह जनपद विकसित है। यहाँ उत्तरपूर्व रेलमार्ग की शाखाएँ हैं।
नगर
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के लगभग मध्य में स्थित प्रधान प्रशासकीय नगर है। यहाँ रेलवे जंकशन है। इसे 15वीं सदी में बिसेन राजपूत राजा मानसिंह ने स्थापित किया था। अब भी इसके अवशेष मिलते हैं जो गड्ढों एवं तालों के रूप में फैले हैं। राजा रामदत्त सिंह के शासनकाल तक यह न केवल प्रसिद्ध राजपूती गढ़ था प्रत्युत एक व्यापारिक संस्थान भी हो गया था। उन्होंने यहाँ विभिन्न एवं औद्योगिक व्यापारियों को बसाया। कई नए मुहल्ले बसाए जाने से नगर की जनसंख्या एवं क्षेत्र में प्रचुर वृद्धि हुई। 1857 ई. के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में गोंडा के राजा द्वारा राष्ट्रभक्ति का परिचय दिए जाने के कारण राज्य जब्त हो गया और बलरामपुर तथा अयोध्या के देशद्रोही किंतु अंग्रेजों के साथी राजाओं को दे दिया गया। क्षेत्रीय रेलमार्गो तथा सड़कों का केंद्र होने के कारण यह जिले का प्रधान व्यापारिक तथा यातायात केंद्र हो गया है। यहाँ जनपद के प्रशासनिक कार्यालयों के अतिरिक्त शिक्षण तथा संसकृतिक संस्थाएँ भी हैं।